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वासुदेव बना । वहां से नरक में गया । उसके बाद हाथी के भव में और फिर अनन्त काल के लिए ठेठ निगोद में चला गया ।
अधिक उंचाई अधिक नीचे गिराती है। मार्ग में चलनेवाला गिरे और उपर की बिल्डिंग से कोई गिरे, तो फरक तो होगा ही ना?
यदि मैं कोई भूल करूं तो आपकी अपेक्षा दस गुना प्रायश्चित्त मुझे आता है।
दूसरा व्रत : असत्य बोलने में अभिमान मुख्य कारण है। इस ओर दूसरा कषाय अभिमान है ।।
असत्य बोलकर भी मनुष्य अपने कन्धे को अक्कड़ रखेगा। इसे उपमिति में 'शैलराज' कहा गया है, पर्वत जैसा अक्कड़ ।
अभिमान आने पर विनय चला जाता है, विनय जाने पर ज्ञान जाता है । अभिमान ज्ञान को रोकनेवाला हैं । उदाहरणार्थ स्थूलभद्र । अधिक ज्ञान को घटाने का उपाय है अभिमान । अभिमान करने पर आपका ज्ञान घट जाता है । स्थूलभद्र थोड़ा प्रभाव बताने गये तो नया पाठ बंद हो गया ।
दूसरा व्रत नम्रता के द्वारा ज्ञान की समृद्धि प्रदान करता हैं ।
तीसरा व्रत : नीतिमत्ता प्रदान करता है । नीति गई तो फिर आचरण क्या रहा ? न्यायपूर्वक का वर्तन विश्वसनीय बनता हैं ।
चोरी में सहयोगी माया है । तीसरा कषाय भी माया है । व्यापारी क्या मिलावट आदि माया के बिना करता है ? मूल्य अच्छे माल का लो और माल नकली दो, इसमें चोरी एवं माया दोनों हैं कि नहीं ? - ऐसा करने पर सरकार ४२० की धारा, धोखा धड़ी का कानून लगाती है न ? चौथा पांचवा व्रत अनासक्ति प्रदान करता हैं । कंचन-कामिनी का भी लोभ होता है । असल में चार ही व्रत हैं । बाईस तीर्थंकरों के समय में तथा महाविदेह क्षेत्र में सदा के लिए चार व्रत ही हैं । ये तो हम जड़ हैं अत: चौथा व्रत अलग लेना पड़ा है।
जो वीर्य हमें अजन्मा बनाने में सहायक बनता है, उत्साह बढाता है, उसके द्वारा हम अपने जन्मों की वृद्धि करते हैं। किसी को जन्म देना अर्थात् अपने जन्मों की वृद्धि करना । कहे कलापूर्णसूरि - १ ***
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