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कच्छ) चातुर्मास प्रवेश, वि.सं. २०५५
२३-७-१९९९, शुक्रवार
आषा. सु. द्वितीय १०
इस समय भी जिसे मोक्ष में जाना हो उसे प्रभु के मार्ग रूप तीर्थ का आश्रय लेना ही पड़ेगा ।
आज भी हम मोक्ष की आराधना कर सकते हों तो वह भगवान का प्रभाव हैं ।
तीर्थंकर भगवान तीर्थ की स्थापना करते हैं परन्तु उसका संचालन गणधर-स्थविर आदि करते हैं। आज भी उनकी अनुपस्थिति में इस पद्धति के कारण जैन-शासन चल रहा है ।
- गुरु कैसे होते हैं ? जो अन्यदार्शनिकों को भी आकृष्ट कर सकें, जिनके दर्शन मात्र से अन्य जीव धर्म प्राप्त कर लें ।
साधूनां दर्शनं पुण्यं, तीर्थभूता हि साधवः । तीर्थं फलति कालेन, सद्यः साधु - समागमः ॥ इसका वे जीवित उदाहरण होते हैं ।
सात-आठ वर्ष दक्षिण में, मध्य प्रदेश में रहें । सन्तों के प्रति लोगों का अपार बहुमान देखा । 'पेरियार स्वामी' कहते ही वे लोग साष्टांग दण्डवत् करते, सो जाते, मोटरमें से उतर पड़ते, वन्दन करते और मोटर में बैठने का आग्रह करते । वाहनों में नहीं (कहे कलापूर्णसूरि - १ **
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