________________
आस्वादन करे, ऐसे सद्गुरु के योग से अनेक जीव ग्रन्थि-भेद करके सम्यक्त्व प्राप्त करते हैं ।
ऐसे गुरु के गुण गुरु के ही पास रहें, तो उनकी निश्रा में रहनेवाले शिष्यों को क्या लाभ ? इस प्रश्न का उत्तर यह है कि उनके प्रति शिष्यों की भक्ति एवं बहुमान में वृद्धि होती है । नूतन दीक्षित मुनि गुणरत्नसागर गुरु के प्रति भक्ति, श्रद्धा, बहुमान से तर जाते हैं । जहां भाव से गुरु-भक्ति होती है वहां चारित्र में स्थिरता होती है । यह व्याप्ति है । चारित्र में स्थिरता हुई, यही शिष्य को गुरु से लाभ हुआ । श्रद्धा-स्थिरता च चरणे भवति । तथा हि गुरु-भक्तिबहुमान - भावत एव चारित्रे श्रद्धा स्थैर्यं च भवति । नान्यथा । गुरु के प्रति बहुमान नहीं हो तो चारित्र में श्रद्धा एवं स्थिरता नहीं रहेगी । इसका अर्थ यह हुआ कि आज यदि हमारे चारित्र में कुछ भी श्रद्धा या स्थिरता हो तो वह गुरु - भक्ति का प्रभाव हैं ।
समापत्तिः ध्याता ध्येय एवं ध्यान की एकता । ध्याता आत्मा, ध्येय परमात्मा एवं ध्यान की एकता अर्थात् ऐका संवित्ति ।
संवित्ति = ज्ञान ।
श्रुतज्ञान से बोध मिलता है, उस बोध को भगवान में एकाग्रतापूर्वक लगाना ध्यान है ।
समापत्ति में ध्याता परमात्मा के साथ पूर्णत: निमग्न होता है । भगवान के साथ यह समापत्ति हमने कदापि की नहीं है । सांसारिक पदार्थों के साथ तो अनेकबार की है । आज भी करते हैं ।
'उच्चकोटि का जीव समापत्ति के समय तीर्थंकर नाम-कर्म भी बांध सकता है' ऐसा हरिभद्रसूरि कहते है ।
'गुरु का बहुमान ही स्वयं मोक्ष है,' इस प्रकार पंचसूत्र के चौथे सूत्र में कहा है ।
-
-
'घृतमायुः' की तरह गुरु- बहुमान मोक्ष का अनन्य कारण है । कारण में कार्य का उपचार हुआ है ।
गुरु-भक्ति के प्रभाव से ऐसी समापत्ति इस समय भी हो सकती है । महाविदेह की प्रतीक्षा करने की आवश्यकता नहीं है ।
कहे कलापूर्णसूरि १ ******
-
** ५७