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शायद ही होगा ।
___ अग्नि संस्कार के समय कुमारपाल बच्चे की तरह रो रहे थे । कारण में कहा : दुःख इस बात का है कि ऐसे गुरु मिलने पर भी एकबार भी गोचरी बहोरा नहीं सका । क्योंकि राजपिंड वे ले नहीं सकते थे । क्यों न मैंने राज्य का त्याग किया ?
यह है गुरु भक्ति !
प्रभु - आज्ञा का पालन गुरु करते है । गुरु-आज्ञा का पालन हमें करना है । गुरुतत्त्व के बिना कभी किसीका उद्धार नहीं हो सकता । देव-गुरु और धर्म इन तीनों के बीच गुरु है । मुख्य होता है वह बीच में ही रहता है । दीपक को बीच में रखने से दोनों कमरे में प्रकाश आ सकता है । इसे देहलीदीपक न्याय कहते है । देव और धर्म दोनों की पहचान गुरु के द्वारा होती है ।
प्राप्त करने जैसा गुण गुरु-समर्पण है ।
हृदयमें गुरु बसे हो वह तो ठीक है, लेकिन गुरु के हृदयमें हमारा स्थान हो जाय तो काम हो जायेगा । एकलव्य का स्थान गुरु के हृदयमें भी था।
शास्त्रमें कहा है : हो सके तो गीतार्थ गुरु बनो, या फिर उनके शरणागत बनो । तीसरा कोई विकल्प नहीं है ।
__ हमारे नगर में गुरु आते है और हम उनकी परीक्षा करना चाहते है । यह है हमारा समर्पण ! गुरु की परीक्षा नहीं, प्रतीक्षा करो । प्रथम स्वयं की परीक्षा करो । अभी गुरु की परीक्षा का हमें अधिकार नहीं है।
एक प्रसंग याद आता है : किसी गुरु ने शिष्य से कहा : गोचरी के साथ धारदार चप्पु भी ले आना।
समर्पित शिष्य ने वैसा किया ।
मध्य रात्रि में गुरु उसी शिष्य की छाती पर जा बैठे ! ऐसा हो जाय तो क्या करेंगे आप ? लेकिन यह तो समर्पित शिष्य था ।
गुरुने अंगुली में से चप्पू से खून लिया और चले गये । ___ सुबह गुरु ने शिष्य को पूछा तब उसने कहा : जिसको मैंने
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