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________________ २८१ अष्टादश अध्याय अनुवाद। हे पार्थ! प्रवृत्ति और निवृत्ति, कार्य और अकार्य, भय और अभ य, तथा बन्ध और मोक्षको जिससे जाना जाता है वही सात्त्विक बुद्धि है ॥३०॥ व्याख्या। प्रवृत्ति (१६ अः ७ श्लोक) निवृत्ति (१६ अः ७ श्लोक ); "कायं"-अपूर्व, जिसे वि.या नहीं गया, करना होगा; और "अकार्य"-जिसे कर चुके, करना नहीं होगा; "भय”–मरणका स्मरण; "अभय"-"मैं अमर हूँ" यह निश्चय ज्ञान; "बन्ध"-जीवभाव; "मोक्ष'-ब्रह्मज्ञानाधिकार । हे पार्थ! जो बुद्धि इन सबको निश्चय करा देती है उसको सात्त्विकी बुद्धि कहते हैं ॥ ३०॥ यया धर्ममधर्म च काय्यं चाकार्य्यमेव च । अयथावत् प्रजानाति बुद्धिः सा पार्थ राजसी ॥३१॥ अन्वयः। हे पार्थ! यया धर्म अधर्म च कार्य च अकार्य एव च अयथावत् ( सन्देहास्पदत्वेन ) प्रजानाति, सा राजसी बुद्धिः ।। ३१ ॥ अनुवाद। हे पार्थ! जिससे धर्म और अधर्म तथा कार्य और अकार्यको अयथावत् जाना जाता है, वही राजसी बुद्धि है ॥ ३१॥ व्याख्या। हे पार्थ! "धर्म" ... ( हम अः २य श्लोक देखो), "अधर्म"-तद्विपरीत, "कार्य” और “अकार्य”– ( पूर्व श्लोक देखो ); इन सबकी सत्यता प्रतिपादनमें जो भ्रम ला देती है, संशय उठा देती है ( अविश्वासिनी बुद्धि ), ऐसी बुद्धिको राजसी बुद्धि कह करके जानना ॥३१॥ अधर्म धर्ममिति या मन्यते तमसावृता । सर्वार्थान् विपरीतांश्च बुद्धिः सा पार्थ तामसी ॥ ३२ ॥ अन्वयः। हे पार्थ ! तमसावृत्ता सती या अधर्म धर्म इति ( मन्यते जानाति) सर्वार्थान् च (सर्वानेव ज्ञेयपदार्थान्) विपरोतान् एव मन्यते, सा तामसो बुखिः ।। ३२ ।। __ अनुवाद। हे पार्थ । तमसाच्छन्न हो करके जो अधर्मको धर्म कह करके मान लेती है तथा सकल अर्थको हो (ज्ञेय पदार्थको ही) विपरीत निश्चय कर लेती है, बहो तामसी बुद्धि है ॥ ३२॥ .
SR No.032601
Book TitlePranav Gita Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanendranath Mukhopadhyaya
PublisherRamendranath Mukhopadhyaya
Publication Year1998
Total Pages378
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith
File Size26 MB
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