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त्रयोदश अध्याय
१३७ और इन सब पचतत्वोंके समष्टि राजसाशसे प्राण, अपान, समान, उदान, व्यान यह सब पञ्चप्राण सम्भूत हुए हैं। .
इन सब पञ्चतत्वोंके तामसांशसे पच्चीकृत पञ्चतत्वको उत्पत्ति होती है। पचीकरण यथा; --
इन सब पचमहाभूतोंके तामसांश स्वरूप एक एक भूतको दो भागोंमें विभक्त करके पाँचोंके पाँच अर्धभागको अलग अलग स्थिरभावसे रक्खो, और प्रत्येक शेष पाँच अर्ध भागको चार भागोंमें विभक्त करो। इन पाँच अध के प्रत्येकके भाग चतुष्टयको उन अलग रक्खे हुए पंचाध के बीच में स्वकीय अध को छोड़ बाकी बचे हुए चार अध भागोंके साथ मिला दो। ऐसा करनेका ही नाम पच्चीकरण है। इस पन्चोकरण क्रियामें पञ्चभूत स्थूलत्वको प्राप्त होते हैं, और इसीसे इन्द्रियग्राह्य होते हैं, अपचीकरण अवस्थामें सूक्ष्मत्व हेतु इद्रियप्राह्य नहीं होते। पञ्चीकरण अवस्था में प्रत्येक भूत पचमिश्रित होता है। इसलिये पृथ्वी जो दिखाई पड़ती है, उसमें पृथ्वी अंश आठ आना, जलांश दो आना, अग्नि अंश दो आना, वायु अंश दो पाना और आकाशांश दो आना है। उसी प्रकार जलमें जलांश आठ श्राना और बाकी प्रत्येक चार भूतका अंश दो दो आना है। इसी प्रकार अन्यान्य भूतोंमें भी जानो।
इस पञ्चीकृत पञ्चमहाभूतसे ही स्थूल शरीर उत्पन्न होता है । इसीसे पिण्ड और ब्रह्माण्डकी एकता संगठित होती है।
इस तत्वोत्पत्ति-प्रकरणमें अपञ्चीकृत पञ्चमहाभूत क्या है, उसे समझा दिया गया है। अब स्थूल, सूक्ष्म, और कारण शरीर क्या हैं; उसे कहते हैं
जो शरीर पच्चीकृत पञ्चमहाभूत द्वारा कृत ( गठित ), सत्। असत् कर्मसे उत्पन्न, सुख दुःखादि भोगका आयतन (संस्थान), एवं अस्ति (रहता है), जायते ( उत्पन्न होता है ), वर्द्धते ( बढ़ता है)