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________________ १२ श्रीमद्भगवद्गीता भोग नहीं होगा-चिराकांक्षित जीवन्मुक्तिको भी प्राप्त नहीं कर सकते; उनको निरर्थक लीन हो जाना पड़ेगा, और उस अपूर्ण आकांक्षाके लिये उनमें संसारबीज रह जायगा, इसलिये कालवशसे साधकको फिर संसार-मार्गमें आना ही पड़ेगा; (क्योंकि आकांक्षा करनेका यही गुण है कि कभी न कभी कालान्तरमें उसका फल फलेहोगा, बिना भोग किये उसका क्षय नहीं होता * 1) यदि आकांक्षा न किया जाय, तो और कोई बखेड़ा नहीं रहता, परन्तु यह असम्भव है, क्योंकि, कार्यप्रवृत्तिका मूल आकांक्षा ही है; इसलिये आकांक्षाका फल भोग किये बिना कदापि निरकांक्ष नहीं हुआ जाता,-ध्रुवर्का राज्य भोग ही इसका ज्वलन्त हटान्त है। यदि साधक अब भी अपनी इच्छासे 'निमित्त' हो जायँ, तो सर्वत्र उनका आत्म-प्रभाव विस्तार होकर प्रकृति-वशी रूप यशोलाभ होगा, जीवन्मुक्त अवस्थाकी प्राप्तिसे सब आकांक्षाओंकी परितृप्ति होकर वासना बीज नष्ट हो जायगा, और इसीसे फिर संसारमें जन्म नहीं होगा। इस कारण भगवान कहते हैं कि-कर्मफल विधानके द्वारा, मैंने पूर्वसे ही इन सबको निधन कर रखा है-( अर्थात् क्या होगा अथवा क्या नहीं होगा इन सबको पहिले हो से मैंने ठीक कर रखा है ), तुम केवल 'निमित्त' होकर, भोग द्वारा प्रारब्धको क्षय करके निबींज समाधि लाभ करो। आसनसिद्ध साधक केवळ स्थिरासनमें बैठकर "सहज कर्म" का अनुष्ठान करनेसे ही उनकी आपही आप सब क्रिया हो जाती हैं * जिस अभिलाषको पूरण करने के लिये किसो कम्मका अनुष्ठान किया जाता है, वही सचेष्ठ अभिलाष ही ठीक आकांक्षा है, और वही बन्धन है, भोग बिना उसका क्षय नहीं होता। और जो अभिलाष अनुष्ठानविहोन कल्पना मात्र है, वह ठीक ठीक आकांक्षा नहीं है, इसलिये वह बन्धन नहीं है और उसका फल भी नहीं फलता; परन्तु वह चित्तविक्षेपको उत्पन्न करके कर्मानुष्ठानमें बाधा डालता है ॥ ३३ ॥
SR No.032601
Book TitlePranav Gita Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanendranath Mukhopadhyaya
PublisherRamendranath Mukhopadhyaya
Publication Year1998
Total Pages378
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith
File Size26 MB
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