________________ मचब भाकाय है। तबही हुआ, उत्पत्ति-स्थिति-नाशमान इस दृश्य जगत्का कोई किसीमें श्रासक्ति जिस अवस्थामें नहीं रहता, अथच, मूर्छा, मृत्यु वा निन्द्रारूप अज्ञानताका आश्रय न ले करके जो स्थिति है, वही ज्ञान-अवस्था है / 'विज्ञान'-जगत्को समझना हो तो, ब्राह्मीस्थितिमें नहीं होता, थोडासा नीचे उतरकर प्रकृतिके साथ मिलकर समझने होता है। वह होनेसे ही ब्राह्मीस्थिति एक स्तर, और प्राकृतिक स्थिति एक स्तर हश्रा। ब्राह्मी स्थितिमें उपसर्ग मात्रका अभाव है, और प्रकृतिमें सबही उपसर्ग है इसीलिये 'वि' उपसर्ग दे करके विशेषताका प्रतिपादन किया हुआ है। यह दोनों ही परम्पर अत्यन्त भिन्न पदार्थ हैं। इस विज्ञान-सहित ज्ञानको जान लेनेसे ही निल्लिप्तताका बाधा और नहीं भावेगा, क्योंकि, प्रकृतिके फांसमें पड़ करके प्रकृतिको न समझ करके ही "जीव" बन गया था;-जैसे समझ लिया, तत्क्षणात् "ज्ञान" हो गया, 'शिव' भी हो गया, अतएव ब्राह्मी-स्थिति का बाधा कुछ भी न रहा, और जीवन्मुक्ति भी हो गया // 1 // राजविद्या राजगुह्य पवित्रमिदमुत्तमम् / प्रत्यक्षावगमं धर्म्य सुसुखं कत्तुमव्ययम् / / 2 // अन्वयः / इदं ( ज्ञानं ) राजविद्या ( विद्यानां राजा ) राजगुह्य ( गुयानां राजा) उत्तम पवित्र प्रत्यक्षावगमं अव्ययं धर्म्य कर्तुं सुसुख // 2 // ___ अनुवाद। यह ज्ञान सब विद्याका राजा, अति गुह्य, सर्वोत्कृष्ट, अत्यन्त पवित्र, प्रत्यक्ष प्रमाण-सिद्ध ( निजबोधरूप ), अक्षय, धर्म-सम्मत और सुखसाध्य है // 2 // व्याख्या। यह जो ज्ञान है, वह राजविद्या-श्रेष्ठ विखा है। (राज अर्थमें श्रेष्ठ, और विद्या अर्थ में जिससे ब्रह्मज्ञान कराय देता है)। यह सबसे ऊचेमें रहता है इस करके अत्यन्त गुप्त है, क्योंकि उतना दूर न उठनेसे इसको जाना नहीं जाता ; यह उत्तम अर्थात् इससे उत् ( उर्वमें ) तम (स्थिति ) लाभ होता है;-पवित्र = ग्लानि