________________ अष्टम अध्याय यह हुआ षण्मास (आधा) ब्रह्ममें परिलीन होनेका वा अनावृत्तिकी गति / इसको उत्तरायण ( उत् + तर+अयन ) कहते हैं, जिससे और उंची गति नहीं है // 24 // धूमोरात्रिस्तथा कृष्णः षण्मासा- दक्षिणायनम् / ... तत्र चान्द्रमसं ज्योति ोगी प्राप्य निवर्तते // 25 // अन्वयः। धूमः रात्रिः तथा कृष्ण: दक्षिणायनम् षष्मासाः, तेत्र (प्रयातः ) योगी चान्द्रमसं ज्योतिः प्राप्य निवर्तते // 25 // अनुवाद। जिस कालमें धूम, रात्रि, कृष्ण, और दक्षिणायन षण्मास उदित होता है, उस कालमें (गमन करनेसे ) योगी चन्द्रलोककी प्राप्त होकर पुनरागमन करते हैं // 25 // व्याख्या। धूम धूआं; रात्रि-अन्धकार रात, सूर्यास्त के बाद साढ़े सात दण्ड पर्यन्त रात्रिमान कहाता है, उसके भीतर अन्धकार के गभीरता; और कृष्ण अर्थात् काला; इन तीन रंगोंके मिश्रणमें जो रंग होता है, अर्थात् धू धूआं, अंधियारा अंधियारा, और काला काला रंग देखकर यदि योगीका शरीर त्याग न हो, तो चन्द्रलोक पर्य्यन्त उपभोग करके पुनः 'पुनरावृत्ति' लेने पड़ता है। इसीको ‘दक्षिणायन षण्मास वा कुमेरु गति कहते हैं // 25 // . शुक्लकृष्णे गती ह्यते जगतः शाश्वते मते। एकया यात्यनावृत्तिमन्ययावत्तते पुनः // 26 // अन्वयः। जगतः एते शुक्लकृष्णे गती हि शाश्वते मतेः एकया अनावृत्ति याति, अन्यया पुनः आवतते // 26 // अनुवाद। जगत्की यह शुक्ल और कृष्ण दोनों गतिही अनादि कालसे प्रसिद्ध है; एकसे अनावृत्ति और दूसरेसे पुनरावृत्ति होती है // 26 / / -24