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मष्टमोऽयायः
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अर्जुन उवाच ।
किं तद् ब्रह्म किमध्यात्मं किं कर्म पुरुषोत्तम । अधिभूतं च किं प्रोक्तमधिदैवं किमुच्यते ॥ १ ॥ अधियक्षः कथं कोऽत्र देहेऽस्मिन्मधुसूदन । प्रयाणकाले च कथं ज्ञेयोऽसि नियतात्मभिः ॥ २ ॥
अन्वयः । प्रजुतः उवाच । हे पुरुषोत्तम ! तत् ब्रह्म किं ? अध्यात्मं किं ? कर्म्म किं ? अधिभूतं च किं प्रोक्त ं ? किं च अधिदैवं उच्यते ? हे मधुसूदन ! अत्र देहे अधियज्ञः कः, कथं ( केन रूपेण ) अस्मिन् ( देहे स्थितः ) ? प्रयाणकाले ( मरणकाळे ) च नियतात्मभि: कथं ( केन उपायेन ) ( त्वं ) ज्ञेयः प्रसि ? ॥ १ ॥२॥
अनुवाद | अर्जुन कहते हैं । हे पुरुषोत्तम ! तद्रह्म क्या? अध्यात्म क्या है ? और कर्म भी क्या है ? अधिभूत किसको कहते हैं ? और अधिदेव भी किसको कहते हैं ?, और देहके भीतर अधियज्ञ कौन है - किस प्रकार से यहां रहते हैं ? हे मधुसूदन । संयतचित्त योगीगण मरण कालमें तुमको किस उपायसे जान सकते हैं ? ।। १ ।। २ ।।
व्याख्या | श्रीभगवान्ने पूर्व अध्यायके शेष दो श्लोकों में जो सात पदार्थों की कथा कह चुके, तत्वजिज्ञासु साधक (अर्जुन) उन सबको समझ करके अपने आयत्त में कर लेनेके लिये आत्म-जिज्ञासामें सात प्रश्न करते हैं - (१) हे गुरुदेव ! यह जो आपने ब्रह्मकी कथा कहते हैं, वह ब्रह्म क्या है ? (२) अध्यात्म क्या है ? (३) कर्म क्या है ? (४) अधिभूत किसको कहते हैं ? (५) अधिदेव किसको कहते हैं ? (६) इस देहमें अधियज्ञ कौन है ? किस प्रकार से वह यहाँ रहता है ? (७) प्रयाणकाल में ( मृत्युकाल में देह छोड़कर चले जानेके समय ) किस उपाय करके आपको जाना जाता है ? यह सब प्रश्न