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षोडशसर्ग का कथासार
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नागराज कुमुद ने त्रिभुवनपति श्री राम के पुत्र कुश को मस्तक झुकाकर प्रणाम किया और कंकण उसे देते हुए कहा -- क्षमा करें, गेंद खेलती हुई मेरी कन्या ने आपके हाथ से गिरे हुए इस कंकण को आकाश से गिरी हुई किसी ज्योति की तरह चमकता खिलौना समझकर ले लिया था; अब पुनः यह आपकी, घुटनों तक लम्बी, निरन्तर धनुष की प्रत्यञ्च खींचनेवाली, भूमि के भार को सफलतापूर्वक धारण करनेवाली
को शोभित करेगा और इस अपराध के प्रतीकारस्वरूप मैं अपनी इस कुमुद्वती नाम की कन्या को भी आपको अर्पण करता हूं, इसे स्वीकार करें । राजा ने प्रसन्नतापूर्वक उसकी प्रार्थना स्वीकार कर ली और नागराज ने सबके समक्ष कुमुद्वती का उससे विवाह कर दिया । दिग्पालों ने दिव्य बाजे बजाए और आकाश से पुष्पों की वर्षा हुई। रघुवंश और नागवंश के इस दिव्य सम्बन्ध से सभी प्रसन्न हुए । नागराज विष्णु के वाहन गरुड़ के वास से निःशंक हो गया और कुश नागों के उत्पात की चिन्ता से मुक्त होकर सुखपूर्वक प्रयोध्या में राज्य करने लगा ।