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पञ्चदशसर्ग का कथासार
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न रहने से अपने को अधूरा-सा समझकर राम ने कुश को कुशावती का और लव को शरावती का राज्य देकर भाइयों के साथ उत्तराभिमुख होकर अयोध्या से प्रस्थान किया। उन्हें जाते देख सारी प्रजा और वानर, राक्षस आदि उनके पीछे-पीछे चल पड़े। उन सबके साथ पुष्पक विमान से राम सरयू में पहुँचे । वह सारी भीड़ सरयू में ऐसे घुसी जैसे गायों का झुण्ड घुसता है। उस दिन से वह स्थान गोप्रतर तीर्थ हो गया। और उसमें स्नान करते हुए सब मनुष्य,राक्षस, वानर आदि देवत्व को प्राप्त हो गये।
इस प्रकार आततायी रावण का वध,तपस्वियों की रक्षा, धर्म और मर्यादा की स्थापना करके उत्तर में हनुमान और दक्षिण में विभीषण को अपना कीर्तिस्तम्भ छोड़ राम स्वर्ग को सिधार गये।