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रघुवंशमहाकाव्य उल्लंघन करने में अपनी असमर्थता प्रकट की तो भरत ने उनसे उनकी खड़ाऊँ मांगी। राम ने उसकी इच्छा पूरी कर दी। भरत खड़ाऊं लेकर चला और अयोध्या से बाहर ही नन्दिग्राम में उन्हें सिंहासन पर रखकर राम की धरोहर की तरह राज्य का पालन करने लगा मानो वह बड़े भाई के प्रति अपनी दृढ़ भक्ति दर्शाता हुआ माता के पाप का प्रायश्चित्त कर रहा था ।
उधर सीता और लक्ष्मण के साथ राम उस कठोर व्रत वानप्रस्थ का युवावस्था में ही पालन कर रहे थे, जिसका इक्ष्वाकुवंशी राजा वृद्धावस्था में किया करते थे। एक दिन थके हुए राम एक वृक्ष की छाया में सीता की गोद में सिर रखकर सोये थे; तभी इन्द्र के पुत्र जयन्त ने कौवा बनकर सीता के स्तनों में चोंच मार दी। राम के जग जाने के डर से सीता हिली नहीं। नींद खुलने पर राम ने एक सरकंडे से उस दुष्ट की आंख फोड़ दी।
चित्रकूट अयोध्या के समीप ही पड़ता था । राम को आशंका हुई कि भरत नागरिकों के साथ पुनः यहां न आ जाय, अतः जैसे वर्षाकाल में सूर्य दक्षिण दिशा की ओर चला जाता है, वैसे ही एक के बाद दूसरे ऋषि के आश्रम का आतिथ्य स्वीकार करते हुए वे दक्षिण दिशा की ओर चल दिये। यद्यपि कैकेयी ने सीता का वनवास नहीं चाहा था, फिर भी राजलक्ष्मी की तरह वे उनके पीछे-पीछे चलीं। अत्रिऋषि के आश्रम में अनसूया ने सीता को दिव्य अङ्गराग प्रदान किया। सायंकालीन मेघ-जैसे भीषण राक्षस कबन्ध ने उनका मार्ग ऐसे रोक लिया जैसे राहु चन्द्रमा का मार्ग रोक लेता है। उसने सीता को हर लेने की चेष्टा की। राम-लक्ष्मण ने उसे मार डाला और उसकी दुर्गन्ध से आश्रम की वायु दूषित न हो—इसलिए उसे भूमि में गाड़ दिया। उसके बाद अगस्त्य की आज्ञा से वे पञ्चवटी में ऐसे बस गये जैसे विन्ध्यपर्वत प्रकृतिस्थ हो गया था। यहीं पर एक दिन रावण की बहिन शूर्पणखा कामातुर होकर राम के पास ऐसे पहुंची जैसे घाम से सताई नागिन चन्दन के पास पहुंचती है। वह सीता के सामने ही अपना परिचय देती हुई राम से बोली-मेरे साथ विवाह कर लो, मैं अति सुन्दरी हूं। कामी व्यक्ति अवसर-अनवसर नहीं देखता। संयमी राम ने उसे समझाया कि मैं तो विवाहित हूं, तुम मेरे छोटे भाई लक्ष्मण के पास जायो । लक्ष्मण ने उसे लौटाकर फिर राम के पास भेज दिया। उसे इस प्रकार छटपटाती देख सीता को हंसी आ गयी । जैसे चन्द्रोदय से समुद्र में ज्वार आ जाता है ऐसे ही सीता को हंसती देख वह भी बौखला गई और बोली-मृगी द्वारा