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गया। इस प्रकार घोर युद्ध में भी रख को अचल देखकर इन्द्र ने प्रसन्न होकर कहा कि हे युवराज ! तुम घोड़े को छोड़ कर जो चाहो सो वर माँग लो। यह सुन रघु ने कहा कि हे इन्द्र ! यदि तुम घोड़े को नहीं देना चाहते हो तो मेरे पिता इस सौवें अश्वमेध यज्ञ के पूर्ण फल को प्राप्त करें और इस परे समाचार को सभा में बैठे मेरे पिता तुम्हारे ही दूत के मुख से मुने, ऐसा प्रबन्ध करो।
इन्द्र ने इस बात को स्वीकार किया, और अपने स्थान चला गया । रघु मी अधिक प्रसन्न न होकर (घोड़ा न मिलने से ) अपने घर लौट आये। ___ महाराज दिलीप इन्द्र के भेजे दूत से पहले ही सब सुनकर बहुत प्रसन्न हुये और रघु के शरीर पर हाथ फेर कर उसका अभिनन्दन किया। इस प्रकार मरने पर स्वर्ग में जाने के लिये ९९ सीदियों को तरह ६६ यशों की परम्परा बनाकर राजा दिलीप रघु को राज्य देकर वानपस्थाश्रम में रहने के लिये तपोवन चले गये।