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रघुवंश महाकाव्य
भ्रान्त धारणाओं के आधार पर ८०० ई० में उनकी स्थिति को सकारना पूर्णतया उपेक्ष्य है ।
कालिदास की स्थिति के विषय में कई मत हैं जिनमें तीन मुख्य हैं१. ईसा की छठी शताब्दी, २. ईसा की पंचम शताब्दी, ३. ई०पू० प्रथम शताब्दी १. प्रथम मत का प्रवर्तक फर्गुसन था । उसकी कल्पना थी कि ५४४ ई० में विक्रमादित्य नाम के किसी राजा ने हूणों को परास्त किया और उसी विजयस्मृति में अपना सम्वत् चलाया जिसे प्राचीन सिद्ध करने के लिये उसे ६०० वर्ष पहिले से मान लिया। मैक्समूलर ने भी इसकी पुष्टि की तथा हार्नली ने इसका उपयोग कालिदास का कालनिर्धारण करने में किया। - उसका कहना है कि छठी शताब्दी में राजा यशोधर्मा ने कारूर के युद्ध में हूणों के प्रतापी राजा मिहिरकुल को परास्त किया । अपनी इस महत्वपूर्ण विजय के उपलक्ष में उसने एक सम्वत् चलाया और उसे प्राचीनता का पुट देने के लिये ६०० वर्ष पूर्व से प्रचलित होना प्रचारित किया । यतः कालिदास द्वारा वर्णित रघु की दिग्विजय यात्रा ठीक यशोधर्मा की राज्य-सीमा से मिलती है, अतः सिद्ध है कि कालिदास यशोधर्मा के आश्रित कवि थे ।
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यह कल्पना पूर्णतया भ्रान्ति की नींव पर स्थित है । ५४४ ई. में यदि कोई विक्रमादित्य रहा भी हो तो वह हूणारि होगा शकारि नहीं । संसार के इतिहास में किसी के द्वारा सम्वत् प्रचलित कर उसे प्राचीनता के लिये ६०० वर्ष पूर्व ढकेलने का कोई दृष्टान्त उपलब्ध नहीं । सबसे बड़ी बात तो यह है कि मालव ( विक्रम) संवत् ४९३ में कुमारगुप्त की प्रशस्ति में लिखे गये वत्सभट्ट के शिलालेख में कालिदास के मेघदूत और ऋतुसंहार के कितने ही श्लोकों की स्पष्ट छाप है । अतः इसके बाद कालिदास की स्थिति मानना इतिहास की स्पष्ट अवमानना है ।
२. दूसरा मत है ईसा की पंचम शताब्दी अर्थात् गुप्तकाल में कालिदास को मानना । इस का समर्थन प्रो. के. वी. पाठक, रामावतार शर्मा, रामकृष्ण भाण्डारकर आदि विद्वानों ने किया है । आचार्य चन्द्रबली पाण्डेय ने 'कालिदास' नामक स्वतन्त्र ग्रन्थ लिखकर यह सिद्ध करने की चेष्टा की है कि कालिदास चन्द्रगुप्त द्वितीय के ही आश्रित कवि थे ।
यह मत भी उपेक्षणीय है, क्योंकि इसके समर्थकों में स्वयं मतैक्य नहीं