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रघुवंशमहाकाव्य
की परिभाषा में जितने विषय गिनाये गये हैं उन सबका वर्णन करते हुए कवि ने रघु की २४ पीढ़ियों का वृत्तान्त अत्यन्त सफलतापूर्वक कर दिया। राजा पुरूरवा और उर्वशी के दिव्य अलौकिक प्रेम के वर्णन में जिस रसानुभूति का प्रास्वादन उनकी रचना में होता है, यक्ष की विरहवेदना में उससे कम नहीं होता। लक्ष्मी के अतुल वैभव से मंडित राजभवनों का जिस ढंग से वे वर्णन करते हैं उससे कहीं अधिक प्रभावपूर्ण ढंग से ऋषियों के अग्निहोत्र के धुंए से धूसर आश्रमों का । इस प्रकार हम कालिदास को 'भारतीय संस्कृति के एक ऐसे पर्याय के रूप में पाते हैं जिसकी रचना में हमें बृहत्तम भारत का सर्वाङ्गीण रूप दीखता है। यही कारण है कि २००० वर्षों के इस दीर्घकाल में भी इनकी रचनाओं की लोकप्रियता ज्यों-की-त्यों बनी हुई है।
जन्म-स्थान ___भारतवर्ष के प्रत्येक प्रदेश के विद्वानों ने इस महाकवि की जन्मभूमि अपने प्रदेश में सिद्ध करने के लिये प्रबल प्रमाणों और युक्तियों से पूर्ण अनेक लेख एवं पुस्तकें लिखी हैं। कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, गढ़वाल, मालवा, मगध, बंगाल अथवा दक्षिण भारत को ही कवि की जन्मस्थली माननेवालों ने यह तो सिद्ध कर दिया है कि प्रत्येक भारतवासी के हृदय में कालिदास के प्रति इतना अगाध प्रेम और श्रद्धा है कि वह उसे अपने ही प्रदेश की विभूति समझता है। क्योंकि कवि ने अपने किसी ग्रन्थ में अपने जन्मस्थान का उल्लेख स्पष्ट रूप से नहीं किया है, अतः अन्वेषक उनकी रचनाओं से उनके प्रदेश-सम्बन्धी परिचय तथा प्रेम का अन्वेषण करते हैं। किन्तु कवि की अद्भुत प्रतिभा, सूक्ष्म निरीक्षिका शक्ति और भारत के कोने-कोने का व्यापक और गहरा परिचय इन अन्वेषकों को उनके अपने ही प्रदेश में ले आता है और वे कवि को अपने ही प्रदेश का समझ बैठते हैं । कुमारसंभव में हिमालय का वर्णन, रघुवंश में रघु की दिग्विजय-यात्रा तथा मेघदूत में मेघ के मार्ग का अनुशीलन करने से स्पष्ट होता है कि सम्पूर्ण भारत के भिन्नभिन्न प्रदेशों, उनके क्रियाकलापों तथा उनकी भौगोलिक एवं मानवीय विशेषताओं का जितना गहरा अनुभव कालिदास को था उतना