SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 39
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ यदि हम बचपन से बालक को अहिंसा करुणा-दया के बारे में समझायें और स्वयं के जीवन के जीवन के कृत्यों द्वारा उसे प्रयोग करे तो बालक में अन्य प्राणियों के प्रति अहिंसा-दया-करूणा के भाव जागेंगे। फिर वह दूसरों को सताने की बात ही नही सोचेगा। उलटे दूसरो को बचाने के भाव जागृत होंगे। बच्चों में मैत्री बढेगी यह मैत्र उत्तरोत्तर . विश्वमित्र बनाने की पूर्व भूमिका बनेगी। इससे सबसे बड़ा दूषण शिकार, वृक्षोच्छेदन, युद्ध, घृणा के भाव नही पनपेंगे। जैनदर्शन का सिद्धांत जिओ और जीने दो तथा “प्राणिमात्र समान" की भावना आत्मा को निर्ग्रन्थ बनायेगी। हिंसा के दूषणों-उसके परिणामों पर बहुत कुछ लिखा गया है, लिखा जा रहा है अतः उसका पुनरावर्तन मेरा उद्देश्य नही है। जब मनुष्य का हृदय अहिंसामय होता है तो उसकी वाणी भी नम्र सत्यतापूर्ण होती है। उसे असत्य बोलने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती। वह जान लेता है कि असत्य हिंसा का ही भाईबंद है। एक असत्य पूरी साधना को नष्ट कर देता है-आत्मा को कलुषित कर देता है। विचारों में कालिमा या कुलेश्यायें बढने लगती है। एक असत्य को छिपाने के लिए अनेक असत्य बोलना पडते है। गहराई से देखें तो बालक को अत्य का पाठ हर से माँ-बाप से ही सिखाया जाता है। यह असत्य का बोझ अहम्, कपट आदि बुराइयों का जनक है। झूठा व्यक्ति मायाचारी होता है। सत्यवक्ता सरल निष्कष्ट और आत्मा के गुणों से प्रकाशित होता है। मनुष्य का सर्वाधिक उत्तम गुण है संतोष। संतोषी नर को सदा सुखी माना गया है। पर वर्तमान में वृद्धिगत भोगविलास, भौतिकता की चाहना ने मनुष्य को अतृप्त बना दिया है। उसमें सुख प्राप्ति की लालसा और लालच बढ गये है। आज कल लालसा अधिक इससे चित्त में चोरी, भ्रष्टाचार, परस्वहरण की भावना जन्मती है। एकबार संतोष का बाँध टूटा-फिर प्रलय के अलावा कुछ शेष नहीं रहता। अरे! हम तो उस संस्कृति के लोग है जो बिना पूछे या गिरी हुई वस्तु को भी लेना चोरी समझते है। हमारे संस्कारों में तो जो है उसका भी परिमाण किया जाता है। अरे! करोडों की सम्पत्ति (ज्ञानधारा ६-७ 30 लसाहित्य ज्ञाMA E-)
SR No.032594
Book TitleGyandhara 06 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunvant Barvalia
PublisherSaurashtra Kesari Pranguru Jain Philosophical and Literary Research Centre
Publication Year2011
Total Pages170
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy