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संघाचार्य एक स्वप्न है और उसे वास्तविकता में लाया जाये तो संघ के बहोत सारे विवाद आसानी से सुलझाया शके एवं संघ विश्व के सामने अपना वास्तविक प्रतिनिधित्व कर सके। ये स्वप्न बडा मधुर है, मगर निकट के भविष्य में तेरापंथ को छोडकर अन्य तीनों फिरकोमे ऐसी प्रतिभासंपन्न एवं सर्वमान्य व्यक्ति की उपलब्धि हो, वो बडा कठिन लग रहा है। तो इस परिस्थिति में नेतृत्व का प्रश्न कैसे सुलझा शके? ____चारों फिरको में बटे हुए जैन संघ कुछ कोमन मिनीमम प्रोग्राम अंतर्गत एक रुप हो कर सामूहिक नेतृत्व को अपना सकते है। व्यक्तिगत प्रभावशाली नेतृत्व के अभाव में हम सामूहिक नेतृत्व द्वारा भी काफी समस्याओ का समाधान पा सकते है। सभी फिरको का अपना एक केन्द्रीय बोर्ड या मंडल हो, जीस में फिरके की शाखाओ के प्रधान आचार्यो एवं अग्रगण्य श्रावक आदि का प्रतिनिधित्व हो। एसा प्रतिनिधि मंडल जैन जीवन की सार्वजनिक रुप से प्रभावित करते हुए महत्त्वपूर्ण विवादो के बारे में अपना संगठित प्रतिभाव दे ओर संगठित रुप में कार्य करे।
ये सामुदायिक नेतृत्व वर्ष में एक बार अपनी मीटींग कर सके तो बहोत अच्छा, मगर एसा न कर पाये तो पत्रव्यवहार आदि से भी अपना संपर्क बरकरार रखे। ___अब अपने चतुर्विध जैन संघ को भविष्यकाल को दृष्टि समक्ष रखते हुए जो आयोजन करने चाहीए एसे १४ आयोजन के मुद्दे मैं प्रस्तुत कर रहा हूं। संघ के वरिष्ठ आचार्यो इस मुद्दे में बढोतरी, कम करना या विभिन्न रुप से परामर्श दे सकते है। मगर संघ देश ओर विश्व की वर्तमान परिस्थिति ओर आनेवाले भविष्य को देखते हुए कुछ तो संगठित हो कर हमें आयोजित करना ही होगा। ईस दिशा में थोडा पुरुषार्थ तो अवश्य हो ही रहा है, मगर दृष्टिमंत संगठित पुरुषार्थ जैनसंघ को नई उंचाई पर ले जायेगा।
सब से पहेले पूर्वी भारत में ये संमेलन हो रहा है, तो पूर्वी भारत की परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए प्रथम मुद्दे की प्रस्तुति करुंगा।
जानधारा ६-
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साहित्य ज्ञानसत्र E-5)