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वृत्ति), १०.ल, षड्यन्त्र और कटमासा), ७. मान
पाप है। नैतिक जीवन की दृष्टि से वे सभी कर्म जो स्वार्थ, घृणा या अज्ञान के कारण दूसरे का अहित करने की दृष्टि से किये जाते हैं, पाप कर्म हैं। इतना ही नहीं, सभी प्रकार के दुर्विचार और दुर्भावनाएँ भी पाप कर्म हैं। पाप या अकुशल कर्मों का वर्गीकरण
जैन दृष्टिकोण - जैन दार्शनिकों के अनुसार पाप कर्म १८ प्रकार के हैं- १. प्राणातिपात (हिंसा) २. मृषावाद (असत्य भाषण) ३. अदत्तादान (चौर्य क), ४. मैथुन (काम विकार), ५. परिग्रह (ममत्व, मूर्छा, तृष्णा या संचय वृत्ति), ६. क्रोध (गुस्सा), ७. मान (अहंकार), ८. माया (कपट, छल, षड्यन्त्र और कूटनीति), ९. लोभ (संचय या संग्रह की वृत्ति), १०. राग ( आसक्ति) द्वेष (घृणा, तिरस्कार, ईर्ष्या आदि), ११. क्लेश (संघर्ष, कलह, लड़ाई, झगड़ा आदि) १२. अभ्याख्यान (दोषारोपण), १३. पिशुनता (चुगली), १४. परपरिवाद (परनिन्दा), १५. रति-अरति (हर्ष और शोक), १३. माया-मृषा (कपट सहित असत्य भाषण), १७ मिथ्यादर्शनशल्य (अयथार्थ जीवनदृष्टि)
बौद्ध दृष्टिकोण- बौद्ध दर्शन में कायिक, वाचिक और मानसिक आधारों पर निम्न १० प्रकार के पापों या अकुशल कर्मों का वर्णन मिलता है।
१. कायिक पाप - १. प्राणातिपात (हिंसा), २. अदत्तादान (चोरी), ३. कामेसुमिच्छाचार (कामभोग सम्बन्धी दुराचार)।
२. वाचिक पाप - ४. मुसावाद (असत्य भाषण), ५. पिसुनावाचा (पिशुन वचन), ३. फरूसावाचा (कठोर वचन), सम्फलाप (व्यर्थ आलाप)।
३. मानसिक पाप - ८. अभिज्जा (लोभ), ९. व्यापाद (मानसिक हिंसा या अहिता चिन्तन), १०. मिच्छादिट्ठी (मिथ्या दृष्टिकोण)।
अभिधम्मत्थसंगहो में निम्न १४ अकुशल चैत्तसिक बताये गये है--
१. मोह (चित्त का अन्धापन), मूढ़ता, २. अहिरिक (निर्लज्जता), ३. अनोत्तप्पं-अ-भीरूता (पाप कर्म में भय न मानना), ४. उद्धच्वं
कर्म का अशुभत्व, शुभत्व एवं शुद्धत्व
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