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श्रीकृष्णचन्द्र
श्री मुद्राचतुन स्रा
विजय लखी श्रोण विनिश्रीमन्महाकालीविनीजः क्षितिबेदनाद्वा एचवन्धीम हाथी सिपदाम्बुजायाजसविता नशीमन्ता सेवितः मन्हारी से न्यान्घ निगाह ॥ सादित्यागत महात्मन्वादिष्ट तिटीको नीधन घशालादमविश्रामाशोतनशन्तान्भितानू" सः वसन्न साम्राट तीनमा धासिता दिन्क || ४|न्टीभविष्यतिभूपालाःया लेना या सत्यर्तितः ॥ मत्ता लिखितताम्रपत्रमा घघसूनि शुभालु मार्चपद ॥ शामन्झन्य २०६।।
STEN KONOW.
SCALE 9
W. GRIGGS, PHOTO-LITH.
Lapha spurious plate of Prithvideva. - Samvat 806.