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NOTES ON GRAMMAR OF THE OLD WESTERN RAJASTHAN
ताणी हाथ सुखई ते करी । वार बे वार ते नीसरी ।
बिहुँ पाटीच विचि अधठाम । कपि चम्पारणड मूबड ताम ॥ ७५ ॥ छाँव गुणवन्ति ।
ते आपद पामन्ति || ७६ ॥
4. The Weaver as Viopu, [From the same].
सुगुप्तस्वापि दम्भस्य ब्रह्माप्यन्तं न गच्छति । कोलिको विष्णुरूपेण राजकन्यां निषेवते ।। १३२ ।।
JUNE, 1916]
व्यापार एह कारण मेह न छाँड मतां
कहि दमनक बन्धव नद्द वली । राजकन्या" कोलिकि किम वरी । एक नवरि कोलिक" छइ सार । तेह नइ मन्त्रि एक सूतार || ३३३ ।। तिण" नयरि एक देवप्रासाद। जात्रमहोत्सव हुइ बहु नाद | से ओवा नह राजकुवारि । आवद्द देहरद्द वह परिवारि ॥ ३३४ ॥
से कोलिकि दीठी आवती । रम्भारुपि नौमि श्रीमती । देखी मूर्छा पाँमिठ तेह । तर सूतारि बोलावित एह || ३३५ || घरि आणी नह वालिउँ चेत ॥
नाव बोल नह थवड अवेस । पूछइ मित्र तुझ नह सिउँ थवडें । कहि तद" कोई कारण कहउँ ।। ३३६ ।। काह" कोलिक सिउँ पूछइ भ्रात । ए कारण नी खोटी वात । राजकन्या मई दीठी जिसई । हउँ मोहित तेलीय तिखिई ॥ ३३७ ॥
न वीसरह से मुझ मनि थिक । ते मेलडें हउ माने वेद ! ३३८ ॥
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डॉम ॥ ३४० ॥
ते विण घडी रही नवि सकडें । कहि सूतार मणिसि खेद । कोलिक कहि कन्या जिहाँ रहइ त तूं मुझ नह किम मेलवर घडिड गरुड खीली संचारि । कोलिक रूप नारायण सांग चडी गुरुड बीली चालवद्द । जई बड कुमरी नह मालि । जर कोलिक बोलावद खेवि ह निश्चय छउँ देव मुरारि। समुद्रता मेल्ही नइ दूरि । गरुडवाहन शङ्क [ह] चक्र | कौस्तुभमणि नइ स्यॉन विचित्र || ३४३ ||
पवन प्रवेश तिहाँ नवि लहइ । बुद्धिबल माहरउँ जोजे हवइ ।। ३३९ ।। सङ्ग चक्र सिउँ देव मुरारि । खीली ताउ देखाडि ऊडिड गुरुङ साँझ न समह । निद्रावसेि हर छह बाल || ३४१ | सूस कर जागर 100 छइ देवि । मुझ सिउँ [हवह] विषयसुख सारि ॥ ३४२ ॥ ह' तुझ मिलवा आविड भूरि ।
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हॅली सेशि थकी ऊतरह । कर जोडी नइ वीनति कर ।
हूँ अपवित्रकाया मारपुखी । यूँ तो त्रिभुवन नउ भूपाल । सुझ नद्द सहू पूजा दयाल । कहि कोलिक मम राधा नारि । ते सिउँ माणस नहीं संसारि ॥ ३४५ ॥ कहर कन्या प्रभु तुझ नइ गमह । तु कई माँगड मुझ तात कन्हद । मॉणसदृष्टि न जाँउ अम्हे । देव साखि हूँ वरवडें तुझे || ३४६|| रही राति ते गुरुड वाडेउ । को नवि देखर तिम ऊतरित । कोलिक इम ते नित भोगवइ । दिन आपणा सुखिई नीगवद्द ' ॥ ३४७ ।। कन्याअङ्ग दोठा नख हन्त । कुसुकनर कहि आविउ भन्त । राय प्रसई ते नर वीनवइ । असे न जाणउ स्वामी हवइ ॥ ३४८ ॥ तेडी राव राँणी नइ कहद्द सुणि प्रिया त [...] काँई लहर | तेह नह रूठ जो जम । राय विचार कर
तय इम ॥ ३४९ ॥
88 मि.
96
रम्भकपि. 3 वीनती.
89 पाटीआ.
3
एह देह नही तुम्ह सारिखी ।। ३४४ ॥
90 यूँ कह ड
4
हुं.
इं.. जांडं.
91
90 कोलिको 97 कह इ.
निषेविते. 94 कोलिक. 99 कं इद्द. 09 मोहिउं. 'सुखि छोगवर (sic.) 8 कहर.
6
7
" गुरुडि.
96
* तीनद कोकिल. 100 जागिड. 1 हूं. The line is faulty.