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________________ THE INDIAN ANTIQUARY धनसागर सब बोलह इसउ । सेठि तर कृति वरसह जिसठ | जलथलमण्डल बहु विवसाड धनड [स]पति नढ एह उपाद" || २१ || बीजड पभणइ सागरदत्त | साँभनि तात वात इकश्विन्त । विराजहि लागइ जोखिम घष्ण । ए छह पेल घणा धन तया ॥ २२ ॥ करसण सहस्रगुणउतपत्ति" । ई" बाधइ घरि सम्पत्ति । बोल गुणसागर इम जणि । हाली करम किम इम वखाणि ॥ २३ ॥ अलग कीयह राजा तणी । तर घरि वाधर सम्पति घणी । तर बील धनसागर जाँणि । वय लहडर परिण वडत प्रमणि ॥ २४ ॥ परवसि दिए किम अलग होइ। जिहाँ परवसि तिहाँ निवृति न होइ । राजा मारी इस राज सवि साधिसु मनवा छत काज ।। २५ ।। उद्यम विवध करन्ति । जिणि सवि कज्ज सरन्ति || २६ || नति भरी भण्डार । ठार पडद सो वार ॥। २७ ॥ से सौमरिथम जोइ । धन कारणि जगि बहूध नर ते काई कीज किस 75 रनिवड पेटा चोटडट कुम्भ न भरीह तख किमद्द साँमस्थिम जे राज विए जे परमत्थ निहालीइ पुत्र वयरण हम सौंभली जर ए बोलिसी बोल हिव जोइ न कुण कुन आँप उ घरि वाधर वद्धामण्ड आप समाणड जीपीह जे नर जाणइ एतलब धनसागर पभएर वली जे नर खाँडइ आगला साहसतेजि समत्थ 78 नर जिम पणघोर अन्धार विश तुम्ह पुत्तह विण अम्ह सर 80 तिणि सोनह कीज किस81 मुझ संगति रूडी नहीं सूकइ काठद्द बन्जन्ताडे 83 नीसरियड निस भरि कुमर तेजी न सहइ ताज उ साहस जाँह सरीर ॥ ३६ ॥ The Monkey and the Wedge. विहूए रसोइ ॥ २८ ॥ तट माने हूवढ ससङ्क | कुल आसि कलङ्क ॥ २९ ॥ अस राखी मनि आस । बाहरि नील विनास ॥ ३० ॥ कीजर कुल आचार । ते साचि जागमार || ३१ || कहूँ" कुलवडूण 7 कज्ज । तास तरणा ए रज्ज ।। ३२ ।। से लहुडा न कहाई । वासे जिम पुलाइ (१) 79 ॥ ३३ ॥ जिणि आवड कुन गालि । कॉनज त्रोडर प्रालि ॥ ३४ ॥ जिहाँ भावइ तिहाँ जाइ । नीना फेडह ठाइ ।। ३५ ।। एकनड वरवीर | 3. [From the Pañcakchyana, a metrical rifacimento of the Hitopadeça, contained (1st tantra only) in the MS. No. 106 in the Regia Biblioteca Nazionale Centrale of Florence.] sereris sereri यो नरः कर्तुमिच्छति । स एव निधनं याति कीलोरपाटीव वानरः ॥ ७२ ॥ दमनक कहि ते किम हुई बात । कह" करटक से माहरा भ्रात । खित्री एक रहिउ पुरि जेणि । सिहाँ लाकड विहरद्द सूतार। काष्ठ विचई खीली देई वल्या वन" माँ गढ मण्डाविउ तेणि ॥ ७३ ॥ बिपुहुरे जेमवा 87 नी वार । । वनि भमता वानर सिहाँ मिल्या ॥ ७४ ॥ कीड. 75 किसुं. 70 किं. 78 समय. 71 72 77 कुलवडण. सहस्र इण. उपाय. 79 This verse is so corrupted that I do not see how to restore it. Possibly the fault lies in the second far, which word was erroneously substituted by the amanuensis for some different word (or words) in the original. 81 कीं. 83 बलंतडइ- 83 इच्छति 80 सरब 94 . 73 कहइ. 85 कहर. 86 [JUNE, 1916 धन. 87 जिनवा
SR No.032537
Book TitleIndian Antiquary Vol 45
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRichard Carnac Temple, Devadatta Ramkrishna Bhandarkar
PublisherSwati Publications
Publication Year1984
Total Pages380
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size16 MB
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