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________________ 66 THE INDIAN ANTIQUARY. [MARCH, 1892 पीछे तथा वीर स्वामी पीडै ५१५ पाँच सै पन्दरह वर्ष गर्थे लोहाचार्य भयें। ता का वर्तमान काल पच्चास वर्ष का है। ऐस च्यारूं ही आचार्य का वर्ष सत्थानवै ९७ का है। यह च्याही भाचार्य अनुक्रम सैं एक एक भाकै घाटि पाठी हुये है । दस-नव-आठ-सातमा भङ्ग के पाठी ताई हुये। (7) वहरि ता के पीछे एक अंगके पाठी पाँच मुनिवर होते भए । ता का विस्तार ॥ श्रीवर्द्धमान स्वामी · मुक्तिदये पीछे पांच से पसठि ५६५ वर्ष गये अहहलि आचार्य भए | ता का वर्तमान काल वर्ष २८ भष्टाविंशति का है। वहरि सा कैपीछ तथा वीर जिनेश्वर पीछे पाँच सै तिराणवै ५९३ वर्ष गएँ माघनन्दि भाचार्य भये।ता का वर्तमान वर्ष २१ इक्कीस का है । वहरि ता के पीछे तथा श्रीसनमति नाथ पीछे छह सैकीदह ६१४ वर्ष गये धरसेनाचार्य भये। ता का वर्तमान काल गुन्नीस वर्ष का है । वहुरिता के पीछे तथा श्रीवीर भगवान कुँनिर्वाण भयें पीछे छह से तेतीस ६३ वर्ष भुक्ते पुष्पदन्ताचार्य भये ।ता का वर्तमान काल वर्ष ३० तीस का भया। वहरि सा के पीछे तथा श्री. महावीर पीछे छह सै तिरेसठि ६६३ गये भूतवल्याचार्य भये । ता का वर्तमान काल २० वीस वर्ष का भया । ऐसे अनुक्रम ते भये । वहरि श्रीमहावीर स्वामी कुँ मुक्ति गये पीछे छह से तीयासी ६५ वर्ष ताई पूर्व भङ्गकी परिपाठी चली । फिर अनुक्रम करि घटती रही। और पूर्वोक्त भइल्याचार्यादि पाँच भाचार्य का वर्तमान काल एक सी अठारह ११८ वर्ष का है ।। इहाँ ताई एकाग के धारी मुनि भये हैं। (8) वहरि ता के पीछे श्रुतज्ञानी मुनि भये । भङ्ग के पाठी नाही भए । ऐसे भाचार्यनि की परिपाठी है । (9) तदुक्तं गाथा ॥ अन्तिमजिणिव्वाणे केवलणाणी य गोयम मुणिन्दो। वारह वासे गये सुधम्म सामी य संजादी ॥१॥ तह वारह वासे य पुणु संजादो जम्बुसामि मुणिराओ। अडतीस वास पठिो केवलणाणी य उक्किहो ॥२॥ वासठि केवलवासे तिण्ह मुणि गोयम मुधम्म जम्बू य । वारह बारह वच्छर तिय जुगहीणं च चालीसं ॥३॥ सबकेवलि पञ्च जणा वासठि वासे गये मुसंजादा । पढमं चउदह वासं विण्हुकुवारं मुणेयध्वं ॥४॥ नदिमित्त वास सोलह तय अपराजिय परं हुवावीसं । इगहीणवीस वासं गोवण भहवाहु गुणतीसं ॥५॥ सद सुय केवलणाणी पञ्च जणा विण्हु नन्दिमित्ती य । अवराजिय गोवद्धण [य] भववाहूय संजादा ।।६।। 1"अन्तिमजिणणिव्वाणे तयसय पणचाल वास जादे । एकादहनधारिय पण्ण जणा मुणिवरा जादा ।। ७॥ णक्खत्तो जयपालग पण्डव धुवसेण कंस आयरिया। अहार वीस वास गुणचाल य चोद वत्तीसं ॥८॥ सद तेवीस य वासे एयादह अङ्गधारिणी जादा । वासं सत्ताणवदि य सङ्ग-नव-अठधग जादा ॥९॥ लोक प्राकृत ॥ सुभदं च जसोभई भहवाई कमेण य । लोहाचज्ज मुणीसं च कहियं च जिणागमे ॥१०॥ छह भहारह वासे तेवीस बावण वरस मुणिणाहा | दह-नव-अहधरा वास दुसद वीस मज्झेस ॥११॥ 9 Read vdeě metri causa, 10 MS. 'वासो। 11 Forrar 12 MS. TI 18 Not in MS., but some such addition is required by the metre. are omitted in the Ms. MMS. तर सय पण्णठि, which fita neither sense nor metro. MMS, परिव। 83. IBMS. सत्ताणिवदि। Here three verses MS. तायासि
SR No.032513
Book TitleIndian Antiquary Vol 21
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRichard Carnac Temple
PublisherSwati Publications
Publication Year1984
Total Pages430
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size17 MB
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