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________________ महाजनवंश मुक्तावली (लूणिया गोत्र ) ___ सिन्धु देश मुल्तान नगरमैं मुंधडा महेश्वरी धींगडमल ( हाथी साह ) राजाका दीवान था, राज्यका बन्दोबस्त न्यायसे करता था, इसमें प्रजा हाथी साहको, प्राणकी तरह मानने लगी, इसका पुत्र लूणा, बडा चतुर, राजाका मान्य, योवन अवस्थामैं, शादी करी, एक दिन लूणा स्त्रीके संग, पलंग पर सोता था, उस वक्त, सांपने उसको काट खाया, और नींदसें चमक उठा, ये बातकी खबर होतेही मंत्रवादी, बहुत जहर उतारणे वाले, वैद्योंकी, चिकित्सा करवाई, मगर लूणा मृतक वत् होगया, उसवक्त जिनदत्तसूरिःमुलतानमें थे, महिमा सुण, हाथीसाह रोता हुआ, चरणोंमें जा गिरा, सब हकीकत कही, गुरूनें कहा, जो तुम जैनधर्मा, हमारे श्रावक हो जाओ तो, पुत्र सचेतन होता है, हाथीसाहने सह कुटुम्ब, कबूल करा, गुरू चौतरफ पडदे लमवाकर, पिलंगपर ज्यों स्त्री भरतार सोते थे, त्यों सुलाकर, गुरूनें अलक्ष आकर्षण करा, वो सांप आया, और मनुष्य भाषा बोलणे लगा, हे गुरू, मेरे इसके पूर्वजन्मका बैर है, इसने जन्मेजय राजाके यज्ञमें, ब्राह्मणपणेमैं वेदका मंत्र पढके, मेरेको, होम डाला, यज्ञस्तंभके नीचे शांतिनाथ तीर्थ करकी मूर्ति, इन ब्राह्मणोंने, शान्तिके निमित्त जब गाडी, याने, कोई दयाधर्मी देवता, यज्ञमैं बिगाडन कर देवे, उस मूर्तिको, मैंने गाडते देखी, उस प्रतिमाके देखणेसें, मैंने विचारा, ये मुद्रा मेंने पहिले देखी थी, इस करके मुझको मूर्छ आगई, तब जाती स्मरण ज्ञान मुझकों उत्पन्न हुआ, मेंने पूर्वजन्म देखा, पूर्वमवमेंमें जैनधर्मका साधू था, तपस्याके पारणे, भिक्षाकों गया, बालकोंने, मुझे चिडाया मे क्रोध करके मरा, सो सांप हुआ, मेंने मनसे सम्यक्त्वयुक्त श्रावक ब्रत ग्रहण कर लिया, उस वक्त ब्राह्मणोंके, कहणेसे राजा परिक्षितकी शन्तान, राजा जन्मेजयने, सापोंको पकडवाकर, मंगाया, और ब्राह्मणोंने बेदका मंत्र पढकर, मुझे हवन करा, उस मरतेवक्त मुझे क्रोध हुआ उहांसे, मरके, में नाग कुमार देवता हुआ, ये शिवभूति ब्राह्मण गलत कोढसें मरके, ८४ हजारके आऊखेसें, नारकीया हुआ, उहांसे निकल, वानर हुआ, उहां वनमें, जैनसाधु देशना देते थे, उन्होंने कहा
SR No.032488
Book TitleMahajan Vansh Muktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamlal Gani
PublisherAmar Balchandra
Publication Year1921
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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