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महाजनवंश मुक्तावली
प्रधान मुझकों सम्यक्त्व ग्रहण कराया, और मदिरा मांसकी बलि छुड़ाई, तुम उनोंके, श्रावक होजाओ, तुम सब तरह सुखी होजाओगे, आज पीछे, व्यापार करणा, गुरू महाराजका श्रावक हुए वाद, तुमकों स्वर्ण सिद्धि मिलेगी, जाओ अब सांप नहीं हैं, ये दोनों, उहांसे निकल कर, घर पर आए, उन्होंने खेतीका अनाज वेच दुकान करी, व्यापार चलणे लगा, इधर श्रीजिनवल्लभसूरिः परलोक पहुंचे, उन्होंके पाट श्रीजिन दत्त सूरिःविराजे, स. ११८५ इधर विहार करते पधारे, ये दोनों भाई गुरू महाराज के शिष्य जांण, सेवा करते व्याख्यान सुणकर सम्यक्त्व युक्त, वारह व्रत गृहण करा, गुरूनें, आशीर्वाद दिया, तुम्हारा कुल बढ़ेगा, इन्होंने कहा, हम खरतर गच्छसें, कभी वे मुख नहीं होंगे, गुरूने बिहार करा उन्होंकीं पैठ प्रतीति पारानगर मैं खूब बढ़ी, इधर १ जोगी रस कूंपी भरकर, पाली आया, इन्होंनें भक्ति करी, तब बोला, बच्चा हम हिंगलाज जाते हैं, इस तूंत्रीको तुम्हारे झुंपड़े मैं, लटका जाता हूं, आऊँगा, तब ले लूंगा, लटका गया एक दिन तवा, तपाभया, उस पर, वो रस की बूंदगिरी, तवा सोनेका हो गया, बस इन्होंने, उसकों उतार, असंख्य द्रव्य, बणा लिया, बडे दानेश्वरी, सात क्षेत्रों मैं, बहुत द्रव्य लगाया, पल्लीवाल ब्राह्मणोंकों, गुमास्ते रखकर, जगह २, व्यापार कराया, इस करके पल्लीवाल ब्राह्मण, सब, धनपती हो गये, एक दिन सिद्धपुरपट्टणके राजाकों, लड़ाई मैं, १६ लाख सोनइये चाहिये थे, किसी साहूकारनें नहीं दिया, तब सिद्ध राजनें, इनकों बुलाया, इनोंनें सब दिया, तब सिद्ध राजनें श्रेष्ठ पदका स्वर्ण पट्ट मस्तक पर रखने की आज्ञा दी, जिस मैं लिखा हुआ कुबेर नगर सेठ शंका, और बांकेकों कहा, आवो छोटा सेठिया, उस दिनसें, रांकोंसे सेठि, और बांकेसे सेठिया, इन्होंकी शन्तान काला, गोरा, दक, बोंक, रांका, वांका, एवं ८ शाखा प्रगट हुई, रत्नप्रभुसरिः नें, जो श्रेष्ठ गोत्र, थापन किया, सो वैद वजते हैं, इन सबका मूल गच्छ खरतर है, ।
( राखेचा, पूगलिया, गोत्र )
जेसलमेरका राजा भाटी जेतसी उसका पुत्र केलणदै, उसके गलित