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________________ महाजनवंश मुक्तावली . ३९ कर आया हूं, इस बातकी खबर यहां बैठेही होगई, ये कोई महापुरुष है, गुरू बोले हे राजा साशनदेवी मुझकों कहगई, इतनमैं सींधू नदीका तोफान उठा सो पाणीका पूर ऐसा आता दीखरहा है कि मानो पृथ्वीकों जल जलाकार कर सर्व वहा कर ले जायगा राजा बोला, हे गुरू आप शीघ्र रक्षा करो मेरी सर्व प्रजा हजार ग्रामके लाखों की वस्ती की, भवितव्यता आगई, गुरूनें. कहा, हे राजा तुम्हारे सब भाटी राजपूत, जो कि हनार गावोंमैं बसते हैं, मेरे श्रावक हो जावें तो, सबोंकी रक्षा हो सकती है, राजाने कहा हे परम गुरू, सब महाजन होकर, आपके दास रहेंगे, मगर शीघ्र ३ राजा तो घबड़ाकर उस दरियावके वेगकों नहीं देखणेकी सामर्थासें, गिरके बोलता है, हे गुरू मुनिः पर मेरे राजपूतनें, बेकारण गोली मारी, माफ २ रक्ष २ करता है तब गुरू बोले, आयरह्या, हे राजा, आय रह्या, उठके देख राजा उठके देखता है, तो, दरियाव, पीछा जा रहा है, तब राजाने उसी समय, बडी धूमसें, वाना गाजा और अपनी प्रजासहित गुरूकों, सहर मैं पधराया, और दश हजार भाटी राजपूतोंके संग, जैनी हुआ, गुरूने आयरिया, गोत्र थापन किया इस राजाके सतरमी पीढी लूणासाह हुआ, इसकी सन्तान लूणावत कहलाये लूणा जेसलमेर परगणे मैं आया, मरुधर मैं काल पड़ा देख जगह २ सत्रुकार, देणा शुरू करवाया, पीछे सजयका संघ निकाला, कोलू गाममैं, काबेली खोडियार, हरखूकों, लुणावत पूजणे लगे, ये लोग बहुत वरसों तक, बहलवे गांममैं वसते रहै पीछे जेसलमेर मैं, इस तरह आयरिया लूणावतोंका बंस विस्तार हुआ, मारवाड़मैं फैल गया मूल गच्छ खरतर है, .. (बहुफणा, बापणा, ). - धारा नगरीका राजा पृथ्वीधर पमार राजपूत इसकी सोलमी पीढ़ी मैं । जोवन और सच्चू इस नामके दो नर रत्न उत्पन्न हुए, किसी कारण इस, धारा नगरको छोड जालोर गढ़कों फतह कर, अपना राज्य कर सुखसें रहने लगे, तब आगेके जो जालोरगढ़के राजा थे, उन्होंने कन्नोजके राठोड़ोंकी, सहायता लेकर, जालोरगढं पर चढ़ाई की, बडा घोरेयुद्ध हुआ, एक भी हारे नहीं, तब इन दो भाइयोंनें, अपने दिलजमीके आदमी मुल्कों
SR No.032488
Book TitleMahajan Vansh Muktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamlal Gani
PublisherAmar Balchandra
Publication Year1921
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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