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________________ महाजनवंश मुक्तावली (लूंकड़ गोत्र ) खेता नामका महेश्वरी वाहेती जिसके दो पुत्र लाला, १ भीमा २ ये दोनों नबाब लोदी रुस्तम खांके खजानेका काम करते थे, जिसमैं इन्होंने कोडोंका माल, अपने महेश्वरी ब्राह्मणोंकों, वांटदिया, सम्बत् १५८८ विक्रमके किसीने चुगली खाई, नबाबनें, अहमदाबाद मैं, इन दोनोंकों कैद करदिया, एक दिन, पहरे दारोंकी नजर बचाकर ये दोनों भगे, सो गोढ वाड़ इलाके मैं, आये, पिछाड़ी इन्होंको पकड़नेको, घोड़े चढ़े, तब तपागच्छके जतीने इन्होंसे करार किया, हम तुम्हें छिपायलें, मगर जैनी श्रावक होना पड़ेगा, इन्होंने कबूल कर, सिपाही लोक ढूंढके चले मये. इन्होंने प्राण बचणेसें, जैन धर्म अंगीकार करा, वाद, जोधपुर, फलोदी, गामोंमें, आनेसें, लुकणेसें लूंकड कहलाये, मूल गच्छ तपा) (आयरिया लूणावत गोत्र ) सिंधु देशमैं एक हजार गांमके भाटी राजपूत राजा अभयसिंह राज्य करता था, सम्बत् ११९८ मैं श्रीजिनदत्त सूरिः विचरते २ बनमैं उतरे थे, राजा अभयसिंह सिकारकों निकला, उस समय जिनदत्त सूरिः का, एक साधू , गोचरीके वास्ते सामने आया, उसको देखते ही, राजा बोला, मुण्ड अमंगल है, ऐसे राजाके वचन सुन एक क्षत्रीने गोली मारी, वह गोली साधूके . लगकर गुलाबका फूल होकर गिरपड़ी, राजा घोडेसें उतरकर साधूके चरणोंमैं गिरपड़ा, साधूसे माफी मांगी, तब वो साधू. समतासे बोला, हे राजेन्द्र, हमारे गुरू आचार्य वनमैं उतरे हैं, ये सर्व महिमा उनोंकी है, तूं उनोंका दर्शन कर, तब राजा बनमैं गया, गुरूकों नमस्कार करा, तब गुरूनें धर्मः लाभ कहा, और राजाकों धर्मोपदेश देते. कहने लगे, हे राजा, जीवोंकों मारणा है इसका फल दुर्गति है, जिसमें भी, क्षत्रीयोंको चाहिये कि, निरापराधी जीवोंकों कभी हणे नहीं, षदर्शनको, बेकारण सन्ताना ये राजपू. तोंका धर्म नहीं, जैसा इस समय आप करके आये हो, जैन संघकी रक्षा करणेवाली साशनदेवीनें, उस मुनिः की रक्षा करी, और गोलीका फूल कर दिखलाया, ये वचन सुनते ही राजा, आश्चर्य मैं रहा, इन. महापुरुषकोंमें
SR No.032488
Book TitleMahajan Vansh Muktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamlal Gani
PublisherAmar Balchandra
Publication Year1921
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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