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________________ महाजनवंश मुक्तावली थिरूनें धीर राजाका कराया हुआ सहस्र फणा पार्श्वनाथके मन्दिरका निर्णोद्धार कराया, ज्ञान भण्डार कराया, इस तरह कोड़ों रुपये लगाये, नवरत्नोंके जिन बिंब भरवाये संघ भक्ति बहुत करी सम्बत् सोलासयवयासीमैं सजेजयका संघ निकाला श्री जिनराजसूरिः प्रमुख कई आचार्य संगमैं थे, समय सुन्दर उपाध्यायनें इन्होंकेही संघमैं सजय रास वणाया था, इस वंशवाले जेसलमेरमैं सुलतान चन्दजी कच्छावा बड़े अकलके पूरे सायर पुरुष होगये हैं, उहां भणसाली कछावा बजते हैं, जोधपुरमैं भणसाली सब जातके चौधरी हैं, बादसाह अकब्बरने थेरूसाहको दिल्ली बुलाकर बड़ा कुरब बढाया, थेरू साहने, नब हाथी, पांचसय घोड़े नजर किए, तब बादसाहने, रायजादा की पदवी प्रदान करी, इन्होंकी शन्तानके राय भणसाली कहलाये, आगरेमैं बडा जिनमन्दिर थिरू साहने कराया, सो अब भी विद्यमान है जोधपुरके भणसाली, नौ वर्षतक अपणे पुत्रोंकी, चोटी नहीं रखते हैं, दादा गुरूके दीक्षित चेले बणा देते हैं, बोरी दासोत भणसाली ब्याह भोजकोंसे कराते हैं, ब्राह्मणोंकों, हीजडोको, ब्याहमैं नहीं बुलाते हैं । . (भणसाली सोलंखी २) आभूगढका सोलंखी राजा आभड़दे, ( वह आभोर नाम कहाता है ) इसके पुत्र जीता नही अनेक देवी देवता मनाये, लेकिन पुत्र नहीं जीता तब सम्बत् ११६८ मैं श्रीजिन बल्लभसूरिः महाराज, विचरते २ पधारे, तब राजाने, गुरूसें बिनती करी, हे गुरू महाराज, मेरे जो शन्तान होता है, वो मर जाता है, कोई यत्न करणा चाहिये, गुरूनें कहा, जो तुम जैनधर्म धारण करो तो, मृतवत्सा दोष मिट जाता है, तब राजा राणी दोनोंने कबूल करा गुरूमहाराजनें कहा, तेरे सातराणियोंके, अब सात पुत्र होयगें, सो जीते रहैगै, राजा राणी दोनोंने उसी दिनसें गुरूसें, भंडसाल मैं वासक्षेप लिया, इस लिए भणसाली गोत्र थापन करा, सातोंके सात पुत्र हुआ, इन्होंकी आभूसाख प्रसिद्ध भई, इन भणसालियोंने, जब अंबड़नामका अणहिल पत्तनका, और गच्छका श्रावक मुलतान सिंघदेशके नगरमैं जवाहरात खरीदने गया था, उस वक्त श्रीजिन दत्तसूरिः उहां पधारे, तब सजादीवान सेठ, सामंत
SR No.032488
Book TitleMahajan Vansh Muktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamlal Gani
PublisherAmar Balchandra
Publication Year1921
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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