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________________ . महाजनवंश मुक्तावली. २९ मोहरें वांटणेसें वांठिया २ कहलाये इन्होंका परिवार - जादह बीकानेर इलाके मैं वसते हैं. मूलगच्छ खरतर, ___ चोर बेड़िया भटनेरा चोधरी सांव सुखा, मोलछा, पारख, वुच्चा, गुल गुलिया, गूगलिया गदहिया राम पुरिया साख ५० . . - पूरबदेश, नगर चंदेरी मैं, खर हत्थ सिंह राठोड़ राजा राज्य करता था निस्के ४ पुत्र थे, अम्बदेव, नींबदेव २ असा ३ आसपाल ४ सम्बत् विक्रम ११९२ मैं में, श्रीजिन दत्तसूरिः खरतर गच्छा चार्य, युग प्रधान, चंदेरी परगने मैं पधारे, उस वखत, राठ लोकोंकी फोज, संग में लिये हुए यवन लोक काबली, मुल्ककों, लूटणा शुरू करा, बहुत अगणित द्रव्य लेकर जाने लगे, तब राजा खरहत्थकों, ये खबर हुई, तब दुष्टोंको सजा देणेके लिए, राजा, ४ पुत्रोंकों संग लेकर सेन्याके संग युद्ध करने चला, युद्ध मैं सब धन राजाके सुभटोंने यवनोंसे छीन लिया, मगर युद्ध मैं राजाके पुत्र घायल हो गये, राजा उन्होंको पालखी मैं डालके पीछाघिरा, शस्त्र वैद्योंने जबाब दे दिया कि, ये पुत्र किसी तरह नहीं बच सकते, राजा सुणतेही. मूर्छा खाकर नीचे गिरा, तब लोकोंने, ठंढा पाणी, ठंढी हवा, करके, सचेत. करा, विलापात करणे लगा बेटे अचेत पड़े हैं इतने मैं मुनिगणसें सेव्यमान : श्रीजिन दत्तसूरिः विहार करते चले आये लोकोंने राजासें अरज करी हे पृथ्वीपती शान्त दांत जितेंद्री अनेक देवता है हुक्म मैं जिनोके ५२ वीर ६४ योगिनीयोंको वस करता पांच पीरोंको ताबेदार बनानेवाले, बिजलीकों पात्रके नीचे थामणेवाले, जंगम सुरुतरु, आपके भाग्योदयसें वो पधार रहे हैं, राना ये सुणतेही, सामने जाके चरणों में गिरपड़ा और रोणे लगा, गुरूने कहा, हे राजेन्द्र क्या दुःख है, तब चारों पुत्र मृतकवत् पालखी मैं जो पड़े थे. सुभटोंने लाकर हाजिर करे, गुरूने कहा जो तुम जैनधर्मी बनो, मेरी आज्ञा मानो तो, चारों अभी अक्षत अंग हो जाते हैं, राजा कहता है, हे परम गुरूजी, जो मेरी शन्तान और मैं आपसे और आपकी शन्तानोंसे, वे मुख हो कभी सुख नहीं पावेगें आपकी आज्ञा खरहत्थ की सब शन्तानकों मंतव्य है इत्यादि जब प्रतिज्ञा कर चुका तब गुरूने जो गणियोंको याद फरमाया
SR No.032488
Book TitleMahajan Vansh Muktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamlal Gani
PublisherAmar Balchandra
Publication Year1921
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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