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________________ प्रस्तावना. चारों ही वर्णका कृत्य करने लगे, ब्राह्मणोंकी सेवासे कायस्थ नामसे प्रसिद्ध हुये ये ज्ञातिवाले बडे दक्ष चतुर राज्यकार्यकर्त्ता होते हैं हैदरावाद दक्षण में, कायस्थ, तथा खत्री जागीरदार राजापद रायपदसे युक्त हैं आभीरदेशी, अहीर, गऊपालन, सेवा मुख्य वृत्ति है, वीकानेर में केइ खबास कहाते हैं गोप, ग्वाले इनोंमेसे केई जाति भिन्न हो गई है, तीन हजार वर्ष पहिले तातार देस शर्मारामा महाराणीने दक्षण भरतपर चढाई करीथी ऐसा इतिहास तिमिरनासकके तीसरे भाग में लिखा है उसनें महासंग्राम पूर्वदेशमें कर शंब निसंब राजा जिन धर्मियोंको मार अपणी आज्ञावर्ताई मनुष्योंकों कष्ट देने लगी तब उसको प्रशन्न करने श्यामाकी मूर्त्ति सर्वत्र स्थापन कर लोक पूजने लगे और ब्राह्मणो के आज्ञानुसार भैंसा वकरा आदिकी बलि देने लगे तब शमीरामा प्रशन्न हो अपने भक्तोंकों सोम्य दृष्टिसें देखने लगी देवी पूजाकी प्रवृत्ति दक्षण भरतमें उस दिवससे हो गई उसके राज्य शासन में तातार देशी लोक इहां वस गये वे जाट नामसे प्रसिद्ध है इनोंकी स्त्रियोंका वेष धावला आदि देख तातार देशी पना प्रसिद्ध होता है इनोमें कोई धर्म प्रथम नहीं था इहां मारवाडमें रहते २ जसनाथजी इनोंमें हुये, इनोंमेंसे विसनोई भिन्न हुये इनमें जांभा जी हुये, इन दोनोंने दयाधर्म इनों में प्रवर्त्ताया, इन दोनोंके उपदेश रहित जाट मद्यमांसका परेज नहीं करते हैं, भाटी राजपूत इनोंसै विवाह करा, उस वंसमें, पंजाब देशवासी, भरतपुर आदिके जाटराजा विद्यमान है, नाभा पटियाला आदि, थली देशमें भी जाटोंका राज्य था, संवत् १५०० सै पछि राठोड राव बीकाजी इनोंसे राज्य युद्ध करके लेलिया, कोटंब [कुणबी ] ये दक्षण भरतके एक तरेके वैस्य जाति प्रथमसे है, गऊ पालन, खेती व्यापार राज्य सेवा इनोंका कर्त्तव्य है, सीबी यह भी एक कृषक जाति भरत क्षेत्रकी है, इनोंमे वगडावत २४ भाई राजा हो गये थे, इत्यादि नाना जातियोंका निवास स्थान, ४ वर्णोंसे विभक्त दक्षण भरत है, इस समय विशेषपने, धर्म नामसें ४ है जैनी, १ पुराणी २ समाजी, ३ और काजी ४ इनोंके भेदांतर एक सहस्र होगये हैं, ईसाई धर्म भी हिन्दमें होगया, बौद्ध धर्म इहां नहीं है, हिन्दू मत २० करोड मनुष्य संक्षा, २० करोड मुसलमान मत संक्षा, २५ करोड ईसाई मत संक्षा, ५० करोड मनुष्य, बौद्ध मत संक्षा है, जिसमें मांस नहीं खानेवाले बेजेटेरियन ५ करोड भी नहीं होंगें मुसलमानोंसे सुणा है, जीवोंकों मारना आजाब है, लेकिन खाना सबाब है इसमें सम्मिलित एक मताध्यक्ष कहता है जीवोंके मारनेसे एक पाप हो, बचाने
SR No.032488
Book TitleMahajan Vansh Muktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamlal Gani
PublisherAmar Balchandra
Publication Year1921
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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