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________________ २४ प्रस्तावना. पातालका है, घाट प्रमुख बंधाया हो तो, आश्चर्य नहीं, इहांके पंडे पोकरिये, सेवग कहाते हैं, उत्पत्तिका इतिहास इनोंकाये कहते हैं, व्यासके पुत्र शुकदेव, उनोंके ५ पुत्र हुये, उनोंकी शंतान हम है, ब्राह्मणोंके पुराणोंसे सिद्ध है, शुकदेव, यावज्जीव ब्रह्मचर्य धारी ऋषि थे, जैनियोंके ज्ञातासूत्रमें भी ऐसा लिखा है, शुकदेव संन्यासी, द्वारिकामें, था बच्चापुत्र, जैनसाधुसैं, धर्मसंबंधी प्रष्णोत्तर पूछकर, पांचसय सन्यासियोंसैं, जैन दीक्षा, स्वीकार करी, अंतमें संजय पर्वतपर पंचशत ही मोक्ष पाये, तब किस शास्त्रानुसार, शुकदेवजीके ५ पुत्र होना, लोकमंतव्य करै, टाड सहाब २० हजार बेलदारोंका, पुष्करपर ब्राह्मन बनाना लिखा है, वह पुष्करणे ब्राह्मण, सैंधवारण्य वासियोंके संग बिल्कुल नहीं मिलता, क्योंके न तो पुष्करपर पोकरणोका अधिकार है, न पुष्करके गर्दन वाह पोकरणोंकी वस्ती है इस लिये, दुसरी यह बात भी है के ओसवालोंके भोजकोंमें ६ गूजर गोड गोत्रोंके ब्राह्मण ६ खंडेलवाल गोत्रोंके ब्राह्मण, ४ गोत्रके पुष्करणे ब्राह्मण, मिलके, भोजक ओसवालोंके गृहकच्ची रसोई खानेसैं, भोजनसैं भोजक कहाये, जातिभास्कर ग्रंथमें, श्रीमालमैं ५ हजार ब्राह्मण भोजक होना लिखा है, और ओसवालोंके १८ गोत्र ओसियांमें उनोंके साथ भोजक होना लिखा है, ओसियां पत्त न भी श्रीमाल नगरीके राजपुत्रोंने ही वसाई थी केवल ३० वर्षका अंतर है, टाड साहबके प्रत्युत्तररूप ग्रंथ व्यास मीठा लालजीनें छपाके प्रसिद्ध करा है, उसमें लिखा है, ओसवालोंके भोजक श्वयं मंतव्य करा है कि हमारी १६ जाति ३ब्राह्मणोंके गोत्र मिलके बनी है, जब २२२ बीयेवा इसे पुष्करणा ब्राह्मणगोत्र विद्यमान था, तभी तो उनोंमेंसै ४ गोत्र पुष्करणे, भोजक हो गये, तो फिर पुष्करणे ब्राह्मण पुष्करपर बनना कैसै सिद्ध हो, पोकरिये, पोकरणे, सदृश नाम मिलनेसैं क्या दोनों एक हो सक्ते हैं, कदापि नहीं, ओसवालोंके भोजक, साकल द्वीपी सर्वथा नहीं है, न इनोंकी मग जाति है, में भी इनोंके कथनानुसार इनोंकों प्रथमावृत्तीमैं मग लिखा था, अन्य २ प्रमाण मिलनेसे, त्रुटियोंकों यथार्थपने सुधारी है, जब परशुरामनें कृत्तिकार्जुनका नाशकर हस्तिनागपुरका राज्यपती बना,यमदग्निकों कृत्तिकार्जननें मरवाया था, इस द्वेषसे, तदनंतर क्षत्रियवर्गका ७ वखत नास करा, उस समय, बहोतसे, क्षत्रिय क्षत्रियधर्मात्यागकर, व्यापार करने लगे स्यात् वेही रोडे, क्षत्रिय लबाणे आदि हो तो आश्चर्य नहीं, केइयक दरजी नापित आदि कर्म कर शूद्र बण गये, उस कृत्तिकार्जुन राजाकी स्त्री विद्याधर राजाकी पुत्री गर्भवती परशुरामके भयसे भाग कर तापस ऋषियोंके आश्रममें जाकर शरणागत हुई उनोंको निजस्वरूप कहा, वे दयासे इसकों भूमिगृहमें प्रछन्न रक्खा उहाँ पुत्रजन्मा तापसोनें सुभम नाम धरा जब वह ८ वर्षका हुआ उस
SR No.032488
Book TitleMahajan Vansh Muktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamlal Gani
PublisherAmar Balchandra
Publication Year1921
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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