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प्रस्तावना. प्रस्तावना.
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पुराधीस इसके रूपकी प्रशंसा श्रवणकर दूती संचार कर जीवित स्वामीतुल्य अन्य प्रतिमा स्थापन कर उस प्रतिमायुक्त अनल गिरि गंधहस्तीपर दासी और प्रतिमाको लेकर उज्जैण गया दुसरे दिन पुष्पमाला मूर्तिकी म्लान देख, राजा शंकित हुआ, क्योंकि मूल देवाधिष्टित प्रतिमाका अतिशय था, जो पुष्प आरोपन किया जाता, वह म्लान नहीं होकर निजरूपही रहते थे, दासीभी नहीं पाई, तदनंतर राजा, अपनें सर्व हस्तियोंकों निर्मद हुआ देखकर, अनुमान करा, अवश्य अनलगिरि गंधहस्ती इहां आया उसकी गंधसे सर्व हस्ती मेरे निर्मद होगये, वह चंड प्रद्योतविना अन्य राजाके नहीं है तब दूत भेजा दासी 'तुझें दी लेकिन जीवित स्वामीका स्वरूप पीछा भेज, दासी उस प्रतिमाका इष्ट होनेसैं मतिविना रहे नहीं, इसलिये चंडप्रद्योतने, दैना इनकार किया, तदा राजा उदाई, ससैन्य चढाई करी, लोद्रव पत्तनकी भूमि शमीप, जल नहीं, शेन्या जलाभावसे, व्याकुल हुई, राजा चिंताग्रस्त अत्यंत हुआ, उस समय, वह प्रभावती देवता प्रगट हो, अक्षयजलका, दिव्य कुंडरच, चिंता निवृत्तकरी, पुन अधुना रामदेवका स्थान है, तत्र जलाभावसैं, दुसरा कुंड रचा, जो कुष्टी अंधेआदि किसी समय आरोग्य, रामदेवके मेले में उस दिव्य शक्तिसैं होते हैं, तीसरा जलाभाव अधुना जो अजयमेरु नगर है उसके निकट भूमीमैं हुआ, तब तीसरा पुष्कर इहां देवताने रचा, जिसकों अन्य दर्शनी पुष्कर तीर्थकर मानते हैं, राजा उदाई चंड प्रद्योतसैं युद्धकर कारागार कर संग ले पीछा घिरा, एक दिवस भाद्रपद शुक्ल पंचमीको राजा उपोषित पोषध करने, रसोईदारसैं कहा, मैंतो आज उपोषित रहूंगा, चंडप्रद्योतकों, यथारुचि भोजन करा देना, रसोईदारनें चंड प्रद्योतकों पूछा, तब चंडप्रद्योत भयभीत हो, विचारने लगा, निरन्तर उदाई मझें, संग भोजन कराता, आज अवश्य विष देकर मारेगा, तब बोला, आज मेरे भी उपवास है, तब रसोईदारनें चंडप्रद्योत कथित वार्ता कही, तब राजा भयसैंभी उपवास करनेवाला, स्वसाधर्मी समझ, विचार करा साधर्मीको कैदी रखकर मुझैं उपवास पोसह करना उचित नहीं, तब स्वर्णकी वेडी तुडा परस्पर क्षमापनाकर, पौषध साथमें करकर, उज्जयणीका राज्य पीछा दै, विदा किया, परस्पर साद भी थे, क्योंके चेटक राजाकी पुत्री १ चंड प्रद्यातकोंभी व्याहीथी इसलिये, इति त्रिपुष्कर प्रादुर्भाव यह लेख दानादि कुलक, कल्पसूत्र वृत्ति आदि ग्रन्थोंमें लिखा है. - इस पुष्करके, किंचित् दूरवर्ती, वृद्ध पुष्कर [ बुढा ] पुष्कर अन्य भी है, नमालम विक्रम संवत् १२ शताब्दीमें, मंडोवरका राजा नाहरराव पडिहारने कोनसा पुष्करका जीर्णोद्धार करा, इस देवाधिष्टित पुष्करका जल तो अक्षय