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________________ महाजनवंश मुक्तावली १७१ . ४ ४ श्रीजिन दत्तसूरिःजीनें सवा क्रोड हींकारका जप कर। ५२ वीर.. ६४ योगणी पंच नदी पांच पीरोंको बस किया १ लाख तीस हजार घर राजपूत महेश्वरी आदिकसें जैनधर्मी महाजन बणाये चित्तोड़ नगरके वज्र खम्भकी तथा उज्जैन नगरके वज्र खम्भकी साढा तीन कोटि सिद्ध विद्या निकाल कर जैन संघमें महाउपकार करावो पुस्तक अब जेसलमेरमें विद्यमान वन्द है विजलीगिरी उसको पात्रके नीचे दाब कर विजलीसें बरदान लिया दादा श्रीजिन दत्तसूरिःजी ऐसा नाम जपणेवालेके घर नहीं गिरूंगी मरी गउकूपर काय प्रवेशनि विद्यासें जिन मन्दिरके सामनेसे स्वतः उठादी, मरे हुए नवाबके पुत्रकों, भरु अच्छ नगरमें, परकाय प्रवेशनि विद्यासें, छ महिना जिला दिया संघकी आपदा मिटाई, पुत्र धन रोग अनेक वाच्छार्थियोंकी कामना पूर्ण कर, ओस वंश बधाया, रत्न प्रभ सूरिःने ओसियां नगरमें १८ गोत्र रूप अश्व पति गोत्रका बीज वोया था, उसकों खरतर गच्छाचार्योंने साखा प्रशाखा पत्र फल फूलसें ओप्त वंश सुरतरुको शक्तिरूप जल उपकार रूप छांहसे गह मह कर दिया, जिन्होंसे जैन दर्शन तथा अन्यमती भी निर्वाह करते हैं इन्होंके विद्यमान समय १२०४ में लोद्रव पट्टणमें रुद्रपल्ली खरतर दुसरा गच्छ भेद हुआ जिससे खरतर गच्छके द्वेषी वे प्रमाण लिखते हैं १२०४ में खरतर हुए, ये दूसरी शाखा फटी ऐसे तो ११ शाखा निकल चुकी है द्वेष बुद्धिवाला तो सत्यकों भी असत्य कहेगा लेकिन बे प्रमाण लिखणेसें अन्यायी ठहरते हैं। ४५ मणिधारी श्री जिनचन्द्रसूरिः इन्होंने हजारों घर महाजन वणाये दिल्लीमें इन्होंकी रथी उठी नहीं तब कुतबुद्दीन बादशाहकी आज्ञासें सिरे बाजार । दाग हुआ खोड़िया क्षेत्रपाल सेवित अनेकोंका मरणान्त कष्ट मिटाया मुसल्मीन भी जिन्होंको दादा पीर कहते थे इन्होंके समय पूर्ण तल्ल गच्छी देवचन्द्रसूरिःका शिष्य हेम चन्द्रसूरिः जिन्होंने शब्दानुशासन प्रकट करा कुमारपाल राजाकों जैनी करा छीपा भाव सालोंको जैनी
SR No.032488
Book TitleMahajan Vansh Muktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamlal Gani
PublisherAmar Balchandra
Publication Year1921
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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