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________________ महाजनवंश मुक्तावली. १५९ बेटी धन वानके घर ब्याही होय, मावापोंका, खरच चलाणा इन्साफ है, वेटा जैसी बेटी, लेकिन यह मर्यादा “ आपतकालकी है, किसी कविने कहा है कि ( आपत्तिकाले मर्यादा नास्ति ) व्याहोंमें ज्यादह खरच करणा जमाईके धनसे दुरस्त नहीं, कच्छ देश मारवाड़ देशके गामोंमें थोड़ेधन वाले, कंवारे रह जाते हैं, कारण इसका यही है कि, रीत नहीं. सकते हैं, रुपया दस हजार होय तो पांच छोकरीके माबाप भाईकों, पांचका दागीना ऐसा जुल्म गार रिवाज यातो न्यायी राजा वन्द कर सक्ता है, या विरादरीमे इकलास होय तो वन्द कर सक्ते हैं, बहुत जो. गियोंकी संगत भी इकेली स्त्रियोंकों नहीं करणा, सतीयोंके चरित्र सुन न या पढणा .. अर्हन्नीति मुजब हक्कदारी कानून - खयाल रक्खो जो सख्स अन्तकाल भये उसके मालमिल्कियत पर किसका इक्क है और पेस्तर किसका दोयम दर्जे है बाद फिर किस २ को पहुंचता है। दाय भाग कानून अर्हन्नीति श्लोक) पत्नी पुत्रश्च भ्रातृव्याः सपिंडश्च दुहितृजः बन्धुनो गोत्रनश्चैव -स्वामी स्यादुत्तरोत्तर १ तदभावेच ज्ञातीया, स्तदभावे महीभुजः, तद्धनं सफलं कार्य, धर्ममार्ग प्रदायचः २ - ___ अर्थ ) स्वामीके मरणे वाद उसके कुल जायदादकी मालकिन उसकी औरत है, वेटेका कोई हक्क नहीं कि, आप मालिक, वन सके, औरत पेस्तर . आई थी, तिप्त पीछे लड़का हुआ, तो फेर उसहीका हक्क पेस्तर है, बाद औरतके दुसरे दरजे वेटा, मालिक है, जिसके औरत वेटा, दोनों नहीं है, उस मिल्कियतके मालिक, भतीजे, उनके नहोने पर, सात मी पीढीतकका भाई, मालिक हो सकता है, वह भी कोई नहीं होय तो, वेटीका वेटा ( दोहिता ) मालिक है, और वह भी नहीं होय तो, चौदह पीढीतककाभाई मालिक है, वह भी नहीं होय तो, गोत्रके लोक .मालिक है, गोत्र भी . नहीं होय तो, उसकी जातिके लोक मालिक है, अगर जाति भी नहीं
SR No.032488
Book TitleMahajan Vansh Muktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamlal Gani
PublisherAmar Balchandra
Publication Year1921
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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