________________
१५८
महाजनवंश मुक्तावली.
बाञ्छा रखती है, और लाजसें, या डरसें कायासें, दुराचार नहीं करती, वह मरके वैमानकवासी पहले दूजे देव लोकमें, ५५ पल्य ( असंक्षा ) क्योंकी ऊमरवाली अपरि गृहीता, (वैश्या ) देवांगना होकर, सुख भोगती हैं, इतना पुन्य मन विगर शील पालनेका है; पंछी आकाशमें उड़ते हैं मनुष्योंमें भी कुदरत है, उड़कर चलकर, ऐसा काम कर सक्ता है, विद्याधर, रेल, वाइस कल मोटरमें बैठे ऐसी चाल प्रत्यक्ष चल रहे हैं, पहाड़को भी · मनुष्य उठा सक्ता है, याने नवोंई नारायण, क्रोडमणकी शिला उठाई हजारों पहाड़ अंग्रेजोने फोड़ डाले, सांपको सिंहको आदमी पकड़ सक्ता है, दरियावमें प्रवेश कर रत्न निकाल सक्ता है, अग्निमें कूद जाता है, तरवारोंके प्रहार सह सक्ता है, ऐसे कठिन काम मनुष्य करते हैं, लेकिन हाय जुल्म इस अनङ्ग काम देवको नहीं जीत सकते हैं, अठयासी हजार ऋषी ब्राह्मण बडे २ तपेश्वरी पुराणोंमें लिखे हो गये हैं, तपस्या करते २ स्त्रियोंके दास बन गये हैं, ब्रह्मा विष्णु महादेव स्त्रियोंके नचाये नाचे, इस वास्ते काम देव जीतने वाला है वही परमेश्वर है, वीर्य पात नहीं करे तब, विषय कई किस्मके है, हस्त, पशुपंडग, स्त्री, इन सबोंको छोडणे वालेकों, भगवान वीर फरमा गये हे गौतम, ब्रह्म व्रत धारी, मेरे अर्द्ध सिंहासण बैठणेवाला है, यानें परमेश्वर है, इस वास्ते पड़देकी रीत अच्छी है, मनोमती फिरणा वाजिब नहीं, लेकिन एक २ तरह पड़दा कई २ मुल्कोंमें बडी २ कोमोंमें जारी है उसमें कहार पहाड़िये चाकर वगैरह जा सकते हैं, क्या उत्तम कोमके आदमियोंके लिए पड़दा है वह क्या नाजर है, पड़दा नाम राजपूतों काही सच्चा है, बाकी तो गुड़ खाना गुलगुलेका परहेज करे जैसा है, हर तरह पतिव्रता धर्म रखणा,' श्रेष्ठ है, दिलमें पड़दा तो होणा दुरस्त है, सो भी मन्दिर धर्म शालामें
नहीं होणा, यह रिवाज गुजरातका, अच्छा मालूम देता है, धन लेकर अपणी • लड़कियोंको, साठ २ वर्षके बुट्ठोंके संग ब्याहे जाती है, यह चाल उत्तम
कोम वालोंके लिए तदन बुरा है साठ वर्ष बाद बुढेको हरगिज ब्याह नहीं करणा चाहिये, वेटीको बेच रुपये लेनेसे वरकत कभी नहीं होती अगर पुत्र नहीं होय मातापिताके पास धन नहीं होय अशक्त होय