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महाजनवंश मुक्तावली. कुदरत दिखाता है ३२ कर्मके नचाये देव पशु मनुष्य सब स्वांग नाच रहै हैं, ब्रम्हाको कुम्भारका कर्म करणा पड़ा विष्णुको दश अवतार धारण कर महा संकट उठाणा पड़ा, रुद्रको ठीकरा हाथमें लेकर भीख मांगणी पड़ी, सूर्यको हमेश चक्र लगाना पड़ा, वस कर्मकी गतिको जिसनें पहचाणा वही जन्म मरणसे छूट गया वह सर्वज्ञ ईश्वर ज्ञानानन्द मई अरूपी आत्मा है ३४ जैसैं ईश्वर और जीव दोनों किसीके बनाये हुए नहीं वैसैंही दुनिया किसीकी बनाई हुई नहीं ३५ दुनिया ईश्वरकी कर्ताकी दलील करती है, मगर इन्साफसे पेश नहीं आते ३६ आकाशमें सूर्य चन्द्र तारे जो तुम देखते हो यह ईश्वरके बनाये हुए नहीं है ज्योतिषी देवताओंके विमान है, इन्होंको देवता चलाते हैं ३७ कई लोग जमीनकों नारंगीकी तरह गोल कहते हैं लेकिन जमीन थालीकी तरह गोल है और सपाट है ३८ जमीन नहीं फिरती, अचल है चन्द्र १ सूर्य २ ग्रह ३ नक्षत्र ४ और तारे ५ अपने कायदे मुजिब फिरते हैं ३९ आत्मा एक अविनाशी शरीर तापसे जुदा पदार्थ है मगर कर्म तापके वस मोह अज्ञान जड़ने घेरा हुआ है ४० मांस खाणेसें वैद्यक विद्याके हिसाब बडाही नुकशान करणे वाला और धर्मके कायदेसें नरक जानेका कारण, और जिसें जीवकों मारकर मांस लिया जाता है वह पिछला बदला लिए विगर हरगिज छोड़ेगा नहीं ४१ पेस्तर रावण कृष्ण रामचन्द्र तथा लक्ष्मणादिक विमानके जरिये हजारो कोसोंकी मुसाफरी करते थे ४२ जिसके पुन्य प्रबल है उसका बुरा कोई नहीं कर सत्ता ४३ देव गुरूके दर्शन करे बिगर भोजन करना श्रावकोंको उचित नहीं ४ ४ दौलत धर्मकी दासी है ४५ जैसा दुश्मनका कोप रखते हो ऐसा १८ पाप स्थानकोंका रक्खा करो ४६ वाप माका दिल, वंदगी कर खुश रक्खा करो मांका फरज वापसें भी आला दरजेका है तुम वह करजा कभी नहीं फेट सकोगे, जहां तक धर्म प्राप्तिका सलूक नहीं करोगे उहां तक ४७ जलमें मत घुसो ४८ बिगर छाणा जल मत पीओ. ४९ बिगर गुण दोष जाणे बिगर नजरके वे दरियाफ्त कोई चीन मत खाओ पीओ ५० वासी भोजन मत करो ५१ सरकारी एनके कायदेसें