SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 184
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४८ महाजनवंश मुक्तावली. ड़िया ४८ सेखाणी ४९ सुखाणी ५० सेठ ५१ सुथड़ ५२ सोमलिया ५३ समूलिया ५४ साहला ५५ सोनीवापना ५६ सापद्राह ५७ सांभरिया ५८ सारंगाणी ५९ सूर ६० सींवड़ ६१ सिन्दुरीया ६२ सचोपा ६३ सेल्होत ६४ सेवड़िया ६५ सांचोरा ६६ सोझतिया ६७ संभुआना ६८ सरला ६९ सुंधेचा ७० ___ हंगुड़िया १ हींगड़ २ हेमपुरा ३ इंडिया ४ हाहा ५ हाथाला ६ हाला ७ हीरावत - हिरण ९ हरखावत बांठिया १० हिड़ाऊ ११ हेम १२ हठीला १३ हमीर १४ हंसारिया १५ हंस १६ इसी तरह हमने ६८० इतने नाम पाए सो लिख दिये हैं बाकी अश्वपंती जात रत्नाकर सागर है, इसमें गोत्र नख मुक्तावलीका पार कौन पसिक्ता है अन धन संपदा पुत्र कलत्रादि परिवारसे गुरू देव सदा इन्होंकी संवाई वानी रखे, वड़ शाखा ज्यों, विस्तार पाओ, (गृहस्थाश्रमव्यवहार ) . अस्वल तो सोलह संस्कार जैनधर्मके ( आर्य वेद ) के प्रमाण मंत्र युक्त विधिसें जैनधर्मी श्रावकोंको जन्मसे लेकर मरणपर्यन्त केहैं सो आगे तो जैनधर्मी ब्राह्मण थे वह कराते थे और अब श्रावकोंको चाहिए की जो काल धर्मकों विचार कर जैन जती पंडितोंसे कर बाणा दुरस्त है जो किसी जगह जती पंडित नहीं मिले तो सोलह संस्कार की पुस्तक जैनधर्म आर्य वेद मंत्रोंकी विधी समेत बीकानेरमे हमारे इहां मिलती है पंडित महात्मा जैनी भोजकसे विधीसें करवावे मगर मिथ्यात्वियोंके संस्कार विधीसे दूरही रहना दुरस्त है, गुजरातमे प्रथा शुरू होगई है १ व्रत पच्च खान अपनी कायाकी शक्ती मुजिब नवकारसीसें आदिलेनिभेजेसाधारणा १ धन पैदा करके इसभव परभव दोनों सुधरे और दुनियां तारीफ धर्म वन्तकी दातारकी हमेशा करे वैसाही करणा २ शास्त्र पढे हुए विचक्षण उपदेशी जैनधर्ममें तत्पर निष्कपट महापुरुषकी संगत और द्रव्य भाव भक्ति करणी ३ लैण दैण साफ रखणा ४ करजदार जहां तक बणे वे कारण होना नहीं ५ विश्वास पैठ प्रतिती पूरे बाकिफ
SR No.032488
Book TitleMahajan Vansh Muktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamlal Gani
PublisherAmar Balchandra
Publication Year1921
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy