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________________ १३० महाजनवंश मुक्तावली पचास नगर उस वक्त वस्तीवाले थे, उन लोकोंका खांन पांन मांस मछलीका था क्यों कै जैन ग्रंथोंमें लिखा है भरत पहिला चक्रवर्त छ खण्ड भरत क्षेत्र साधने लगा तब हिमालयकी तिमिश्रा गुफाके वाहर फौजका पड़ाव डाला जिसकों अभी खन्धार कहते हैं, यहांसे ४९ नगरवाले म्लेच्छ राजाकों, अपणी आना मनाने दूत भेजा, ऐसा लेख जम्बूद्वीप पन्नती मूलसूत्रमें लिखा है, इसलिए सिद्ध होता है के, ऋषभदेवके वडेरोंके वखतसेंही, म्लेच्छ खण्डकी वस्ती कायम थी, आधे भरतमें कालधर्म पहिला दूसरा तीसरा आरा आदि वरतणा सिद्ध होता है, सर्व भरत क्षेत्रमें सिद्ध नहीं होता, ऋषभ देवनें तो म्लेच्छ खण्ड वसाया नहीं, केवल सौ पुत्रोंके नामका सौराज्य जिसमें निन्याणवें इधर १ एक हिमालयपार वहुली देश, का बल, जो बाहुबलकू वसा कर दिया, भरत चक्री ४९ नग्र म्लेच्छोंपर आज्ञा मनाकर फिर अयोध्या आकर बहुली देशकी लड़ाई तो, पीछे करी है, जैन लोकोंने इस वातकों विचारणा कोई बुद्धिमान इस बातकों न्यायसें असत्य ठहरा देगा सिद्धान्तकी साक्षीसें तो दुसरी वेर वह वात लिखी जायगी, हमनें तो सूत्रकी साक्षीसें, ये वात लिखी है, हां खास तौर पर जैनधर्म वाले ये बात मानते हैं के भरत एरवतमें कालचक्र फिरता रहता है ऋषभ देवका होणा, तीसरे अरेका अंतका भाग अवसर्पणी कालका था, अंग्रेज लोकभी हिमालय ( वैताढ्यके दक्षिण मुल्क तीन खण्डकोही भारत भूमि कहते हैं क्या मालुम, ये नाम कौरव पाण्डवोंके युद्धके होणेसे भारत कहलाता था, इसलिए धरा है या भरत चक्री पहला जब होता है, तब भरतही नामका होता है इसलिए इस भूमीकों भारत क्षेत्र कहते हैं ( भरतोद्भवा भारता) लेकिन जैनधर्म वाले तो, जहांतक भरत पहले चक्रवर्तका राज्य शासन चले, ऋषभ कूट पर्वततक, जिसपर अपणा नाम लिखता है, उहां तक भरत क्षेत्र मानते हैं, पैरिसतक, उसके पहले वर जैनियोंका लिखा चुल्लहिमवंत्तपहाड़ जिसकों आजकलकोकाफ कहते हैं, और उसके ऊपर, परियोंकी वस्ती मानते हैं, उसके पहिलेवर कोई मनुष्य नहीं जासक्ता, वह उदयाचल पहाड़ कहलाता है, जहांसें सूर्यकी किरणें इस भारत भूमीपर प्रकाश कर
SR No.032488
Book TitleMahajan Vansh Muktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamlal Gani
PublisherAmar Balchandra
Publication Year1921
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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