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महाजनवंश मुक्तावली.
अब कलकत्ते में मलक कहलाते हैं बंगालियों में, इसवास्ते मात्र दयाधर्मी वणिक् जाती जैनधर्मी थे दक्षिण कर्णाटक महाराष्ट्र तैलंग इसमें जो लिंगायत वाणये सेठी कहलाते हैं, ये जैन थे, हिमाद्रि राजाका प्रधान, वसप्पेनें, जैन धर्म छोड शैव मत संन्यासी जंगम नामका भेष खड़ा किया शैवधर्म चलाया, आखिरकों जैना चार्योंसे हिमाद्रि राजानें सभा कराई वसप्पा हार गया, ये वार्ता सेठी लोक सब जानते हैं, वसप्पे के पुराण में उसके ११ में अध्यायकों अभी भी जंगम गुरू लिङ्गायत वणिये नहीं पढ़ते हैं, नहीं सुनते हैं, उसमें जैनियोंसे हारा प्रश्नोत्तर लिखा है, इस लिये वसप्पेनें लाखों जैन दिगांवर मुनियोंकों कतल करा लिङ्गायत वणियों के शिरपर शिखा नहीं, गलेमें लिङ्ग, मुरदा घर में मरे तो, उसको थम्भे से बांध कर, रसोई माल बणाकर, मुरदेके सामने जंगमोंकों बिठलाकर भोजन कराते हैं, वह जंगम मुरदेको ग्राम ( कवा) दिखाता जावै, और खाता जावे पीछे मुर्देकों बैठा निकाले, सन्मुख शंख बजावै, गाडकर आवै, लेकिन् स्नान नहीं करते ऐसा स्वरूप शिव धर्म धारण कर करते हैं, तैलङ्ग देशमें कूंमटी वणिये सर्व जैन थे, अत्र शैव, मांस मदिरा त्याग है । ( अथ वघेर वाल ५२ गोत्र ) महाजन जैन ) वरवाल महाजनोंकी आदि उत्पत्ति गांम ववेरामें हुई राजा व्याघ्र सिंह इन्होंका इतिहास भी यज्ञमें हिंसा हिंसाका फल नर्क ऐसा उपदेश श्री जिन वल्लभसूरिः आचार्यादिकसे सुणके, जैन श्रावक महाजन होते हुए दिगम्बर श्वेताम्बर दोनों धर्म मानते हैं, व्याघ्र सिंह वाघड़ी कहलाये, बाकी गांमके नामसें, ववेरवाल वजगे लगे, ।
गोत्र
गोत्र
गोत्र
बावऱ्या गोत्र | ११ | कौटिया गोत्र सीसोड गो. १२ | भाडाऱ्या गोत्र
१३ | कटाया गोत्र
संख्या
१
संख्या
खटवड़ गात्र लावावास गोत्र ७ ३ साखण्या गोत्र ८ वागड्या गोत्र ४ धजोत्या गोत्र ९. हरसोरा गोत्र सर्वधरा गोत्र | १० | साहूला गोत्र
संख्या
४
१५
वलवाड्या गोत्र धौल्या गोत्र