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________________ महाजनवंश मुक्तावली. ११५ 'पाटका मालिक हो, वैश्य महाजनोंकी रसम है छोटा पुत्र घरका मालिक होय हिस्सा बराबर जितने पुत्र होय जितना करें, पिताके जीते दम एक पत्तीपिता अपणी रख लेवे, माताके जीते माता अपणा सब गहणा रख लेवे, पीहरसें मिला हुआ भी, माताको रखनेका अधिकार है, देवे तो खुशीसें हिस्सेमें दे सकती है लेकिन कायदेसें, हिस्सेदारोंका हक्क नहीं है, वह माता पिताके मरेवाद, छोटे पुत्रका होता है, यदि माता पिताका दिल दुसरे पुत्रोंको, या और किसीकों, देणा धारे देसकते हैं, पुत्रोंको रोकणेका अधिकार नहीं है, मातापिताके पास कुछ होय नहीं तो, पुत्र हिस्से मुजब, उन्होंका गुजरान चलावै, इसमें एक धनवंत कमाणेवाला होय तो वोही माता पिताके निर्वाहका जुम्मेवार होता है, सिरपर ऋण, कुटुम्ब खरचका होय तो, · सब पुत्र हिस्से मुजब देणेमें जुम्मेवार है, कोई भाई बड़ा व छोटा अङ्गहीण कमाई रहित होय तो, वाकी भाई मिलके, या समर्थ एकही, रोटी कपड़ा देणेका जुम्मेवार हो, राजाओंके बड़ा पुत्र राज्यपती होता है इत्यादि कायदेसें विचार भवानी सिंहकी माता अपणे पतीकी बहुत भक्ति करणे लगी; रानाके भोजन करे पीछे भोजन करै, प्रभात समय मुख देखे विना मुंहमें पाणी नहीं डाले, पतीको निंद्रा आये पीछे आप सोवे, बिना हुक्म कोई भी काम नहीं करै, इसतरह पतिव्रता धर्म, पालती हुई, रहै एकदिन राजा परिक्षाके वास्ते राज्यकार्य करता रहा, जब रातको च्यार वने राजा रणवासमें गया तो राणी खड़ी हुई सामने आई राजाने पूछा, क्यों आज सोई नहीं, तब राणी बोली, हुजूरने शयन नहीं फरमाया, मेरा तो क्या, तब राजा सत्कार कर बाहिर आया, और नाजरकों पूछ निश्चय किया, राणी बिल्कुल रातभर खड़ी रही, तब राजाने राणीके पास जाकर प्रसन्नतासे बोला, तुम्हारे सत्वपरमें प्रशन्न हूं जो मांगणा होय सो मांगो, राणी बोली हुजूरकी महरवानी, राजा बोला, महरबानी तो वनी ही है, लेकिन कुछ मांगो ( यतः) सकृद् जल्पन्ति राजानः सकृद् जल्पन्ति साधवः ) सकृद् कन्या प्रदीयन्ते, त्रीण्येतानि सकृद् २
SR No.032488
Book TitleMahajan Vansh Muktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamlal Gani
PublisherAmar Balchandra
Publication Year1921
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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