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महाजनवंश मुक्तावली
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उतारा, सोनपालजीनें जैनधर्म धारण करा, पीछे सत्रुजयका संघ निकाला, जिससे संघवी कहलाये, पीछे केइयक संघवी गोत्रवालोंनें संवत् विक्रम अठारहसेमें, तपागच्छकी सामाचारी करने लगे, तबसें केइयक खरतर गच्छ है, केइयोंका तपागच्छ है, शाखा ४ नवलखा १ फरसला २ ननवाणा ३ पल्लीवाल ४ ।
(सालेचा बोहरा )
सालमसिंहजी दइया राजपूतको श्रीमणिधारी श्रीजिनचन्द्रसूरिः नें प्रतिबोध देकर जैनी महाजन किया सं. १२१७ की सालमें सियाल कोटमें बोहरगत करणेसें बोहरा कहलाये, मूलगच्छ खरतर । ( भण्डारी गोत्र )
गोढवाड़ देश गांम नाडोलका राव, लाखणजी, चौहाणका बेटा, महेसराव वगैरह ६ पुत्र थे, उन्होंको श्रीभद्रसूरिजी खरतर गच्छाचार्यनें, सं. । विक्रमके १४७८ में प्रतिबोध देके जैनधर्मी श्रावक बनाया, देवी इन्होंकी आसा पुरी, जात नाडोल गांममें इन्होंकी लगती है गांम कुचेरोंमें आकरवसें मूलगच्छ खरतर है, पीछे बाद कोई २ दूसरा गच्छ भी मानने लगे, कुचेरा परगणेके भण्डारी अभी खरतर गच्छमें है, साखा दीपावत मोनावत, लुणावत, नींवावत, ।
(वांगाणी )
विक्रम सम्बत् सातसयमें बृहद्छी यशो देव सूरिःजैतपुर पधारे, उहां जयतसिंहजी चौहाण राजाके पुत्र अन्धे होगये थे, जयत सिंहजीनें गुरूसें विनती करी, तब गुरूनें जैनी श्रावक होणा कबूल करवाके, शासण देवतासें एक दिनमें दिव्य नेत्र करवाये, बंग देवका वांगाणी, गोत्र प्रसिद्ध हुआ यह यशोदेव सूरिः खरतर गच्छ वालोंके बड़ेरे थे, इस वास्ते मूल गच्छ खरतर, पीछे संवत् सोलह में और २ सम्प्रदाय मानने लगे,
( डागा )
गोढ़वाङ देशगांम नाडोलमें, चौहाण राजपूत, डूंगर सिंहजीको पकड़ने के लिए, दिल्ली के बादशाहनें, फौज भेजी, कारण पहली डूंगर सिंहजीनें, बहुत से