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________________ ७२. महाजनवंश मुक्तावली तब काजलनें, गुरूसें बिनती करी के, गुरू महाराज दुनियांमें लोग रसायण सिद्धि सोना वगैरह होती बतलाते हैं, यह बात सच्च है या झूठ, गुरूनें कहा, हम त्यागी लोकोंको, धर्म क्रियाकों वर्जके और नाटक चेटक करना योज्ञ नहीं, तब काजल बोला, जिस तरह धर्मकी वृद्धि होय, और में इस विद्याकों एकबार अपनी आखोंसे देखलूं, ऐसी कृपा करो, आपके गुरू श्रीजिन दत्तसूरिजी तो, ऐसे चमत्कारी होगये, इतना चमत्कार तो, आप ही बतलावो, तब गुरू बोले, जो तूं जैन धर्म अंगीकार कर, हमारा श्रावक बणे तो, ये काम भी हो सक्ता है, तब काजल अपने पितासें, पूछणें गया, तब रामदेव बोला, हे पुत्र, राठौड़ जात, खरतरगच्छके, चेले हैं, तूं अहो भाग्य समझ सो गुरू तुझे जैनधर्म घराते हैं, तब आकर बोला, लो गुरूमहाराज जैनधमा करो, गुरूनें नवतत्व सिखाकर, श्रावक बनाया पीछे दीपमालिकाकी रात्रिकों, श्रीलक्ष्मी महाविद्यासे, मंत्र कर, काजलकों, बास चूर्ण दिया, और बोले, जा इतना बास चूर्ण जिसपर डालेगा, वो सोना होजायगा, लेकिन आजही रातकों, प्रह उगतेमें लक्ष्मी देवीका विसर्जन कर दूंगा, फिर नहीं होगा, काजलकों तो, यह चमत्कार ही देखणा था, उपाश्रयसें निकलकर, मन्दिर श्रीजिनराजके छाजोंपर, कुछ बास चूर्ण डाल दिया, कुछ देवीके मन्दिरके छाजोंपर कुछ अपने घरके छाजोंपर डालकर घरमें जाके सो रहा, मूंअन्धारे उठके, श्रीजिनमन्दिरमें जाके, दर्शनकर, बाहर निकला, इतनेही में, बहुत से लोक, रस्ते निकलते, बोले, अरे यह सोनेके छाने, मन्दिरके किसनें चढ़ाये, काजल देख २, बहुत प्रशन्न हुआ, इतनेमें बहुतसे लोक आकर, कहने लगे, रामदेव काजल राठौड के घरके, तथा देवीके मन्दिरके, जैनमन्दिरके, तीनों छाने सोनेके हैं, तब काजल बोला, अरे लोकों, ये महिमा सब, खरतर गुरूमहाराजकी है, उस दिनसें, काजलोत छानेहड़ कहलाये, मूल गच्छ खरतर, 1 ( सिंघवी गोत्र ) नगर सिरोही गोढ़वाड़में, निनवाणा ब्राह्मन बोहरा, सोनपालके पुत्रकों, सांप काट खाया, खरतराचार्य श्रीजिनवल्लभसूरिः नें सं. १९६४ में जहर
SR No.032488
Book TitleMahajan Vansh Muktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamlal Gani
PublisherAmar Balchandra
Publication Year1921
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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