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७० .. महाजनयंश मुक्तावली अर्थ, है राजा कर्मोंका छूटणा वह तो मोहके क्षय करणेसें कर्म जीवसें छूटता है, अगर ऐसी जो तेरी मुक्ति पानेकी इच्छा है तो, तेरी पीठपर खड़े आत्मार्थी जितेन्द्री परम गुरूके क्चनानुसार चल, क्रमसें जरूर मुक्त
हो जायगा, ऐसा कह शिवजी एक कोटि रत्न दिखलाकर, अन्तर ध्यान . हुए, तब राजाने चकित होकर, गुरूसे मुक्तिका स्वरूप पूछणे लगा, तब गुरूने, नव तत्क्का उपदेश दिया, राजानें अपने सह कुटुम्ब जैनधर्म धारण करा, इन्होंसे बोरड़ गोत्र प्रसिद्ध हुआ, मूल गच्छ खरतर,..
(नाहर गोत्र) . __पहले नागोरके पास, मुंधाड नगर मुंधडा महेश्वरियोंने बसाया, उस जगह मुंधड देवीका मन्दिर है। उस देवीके, मुंधडे महेश्वरी शैवमती, सर्व भक्त बसते हैं, उन्हीमेसे भीमका पुत्र देपाल, प्रल्हाद, कूप नगरके राजाका, प्रधान हुआ, और वह धनसे श्रीमंत. बनगया, उस देपालके, एक अत्यन्त प्रिय पुत्र था, जिससे उसका नाम आसधीर रक्खा, । उस. नगरमें, श्रीलघुशान्ति स्तोत्रके कर्ता मान देवसूरिः आचार्य आये, । सूंडाजी. नामका उनका शिष्य गोचरी गया, मगर शैवमती. लोगोंनें, जैनधर्मसे द्वेष रखनेके कारण, आहार पानी नहीं दिया, तब सूंडाने गुरूसें सब वृत्तान्त कहा, तब गुरू बिहार करने लगे, इस समय, शासन. देवी आकर बोली, हे गुरू यहां धर्मका लाभ होगा, आप यहां एक दिन जप तप. साधो, । तब गुरू शिष्य तेला कर बैठ गये, । इतनेमें शासन देवतानें, देपालके पुत्र आसधीरको उहांसे प्रछन्न पणे उठाकर, लेगई,। जब माताने बालकको नहीं देखा तब सर्वत्र खबर करी, मगर पता नहीं चला, । देपाल, पुत्र प्रेमसे विमूढ होगया, । शिष्य जंगल गया था, उसकों देपाल बहुत मनुष्योंके साथ रोता पीटता रास्तमें मिला, उसे रंजमें देखकर, चेलेने पूछा, तब सब हाल भृत्योंनें, कह सुनाया, । चेला बोला, मेरे गुरूके पास. जावो, वह अतिशय चमत्कारी हैं निश्चय तेरा पुत्र बतला देंगे,। सच है. गरज दुनियामें, अजब वस्तु है, (दोहा) गरज २ सब कोई करे, गरज. होत घनघोर । बिना गरज बोले नहीं, जंगलहूको मोर, । १. मतलबरी मनु--