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________________ जैन-विभूतियाँ 365 परोपकारी जीव थे। साहित्य, शिक्षा और दर्शन शास्त्र में उनकी विशेष रुचि थी। उनके प्रोत्साहन से चन्दाबाई ने ज्ञानार्जन का संकल्प किया। दासत्व की जंजीरों में जकड़ी बूंघट की गलफांस में बंधी अज्ञान की कुरीतियों से पीड़ित नारी के समस्त सामाजिक रोगों की एकमात्र रामबाण औषधि शिक्षण ही तो है। शिक्षण ही उसे स्वतंत्र आजीविका एवं प्रतिष्ठा प्रदान कर सकता है। नारी की अस्मिता और आत्म गौरव की रक्षा के लिए शिक्षा अत्यंत आवश्यक है। देवकुमारजी के निर्देशन में अनेकानेक मुश्किलों का सामना करते हुए चन्दाबाई ने काशी की 'पंडिता' परीक्षा उत्तीर्ण की। कन्या शिक्षा के प्रचार-प्रसार को उन्होंने अपना लक्ष्य बना लिया। सन् 1907 में आरा (बिहार) शहर में उन्होंने एक कन्या पाठशाला का शुभारम्भ किया। शांतिनाथ भगवान के मंदिर की एक ओरड़ी (कमरा) में दो अध्यापिकाओं की सहायता से शिक्षण क्रम चालू हुआ। समय के साथ नाना अन्य नारी-उपयोगी प्रवृत्तियाँ संचालित की गई। सन् 1921 में धर्मपुरा (बिहार) में "जैन बालाश्रम'' की नींव पड़ी। तरुण तपस्विनी चन्दाबाई की सतत सेवा एवं सद्प्रयासों से यह संस्था देश की विशिष्ट संस्थाओं में गिनी जाने लगी। यह उनकी लोक-कल्याण की साधना का मूर्तिमंत स्वरूप था। इस बनिता विश्राम के प्रांगण में पधार कर महात्मा गाँधी बहुत आनन्दित हुए थे। जैन समाज की शिक्षण-संस्थाओं में यह अद्वितीय है। यहाँ न्यायतीर्थ साहित्यरत्न, शास्त्री आदि की परीक्षा पाठ्यक्रम के अध्यापन का सुचारू प्रबन्ध है। चन्दा बाई की धार्मिकता अपूर्व थी। उन्होंने अनेक धर्म प्रभावकसृजन करवाये। राजगृह के रत्नगिरि पर्वत पर जमीन खरीद कर एक दिव्य जिनालय का निर्माण बड़े उत्साह व धूमधाम से कराया। बालाश्रम के रम्य उद्यान में सन् 1937 में श्रवण बेलगोला स्थित गोम्मट्ट स्वामी की प्रतिकृति 13 फीट ऊँची मनोहारी प्रतिमा बनवाकर एक कृत्रिम पहाड़ पर प्रतिष्ठित करवाई। साहित्य के क्षेत्र में उनका अनुपम योगदान स्मरणीय है। वे एक सफल लेखिका और सम्पादिका थी। सन् 1921 में "जैन महिलोदय' नामक
SR No.032482
Book TitleBisvi Shatabdi ki Jain Vibhutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilal Bhutodiya
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2004
Total Pages470
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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