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जैन-विभूतियाँ
353 हिसार में अकाल की विभीषिका से पशुओं को बचाने के लिए कैम्प लगाए। बिहार व राजस्थान के अकाल पीड़ितों की सहायतार्थ घर-घर जाकर धन एकत्रित किया।
भगवान् महावीर के 2500 वें निर्वाण महोत्सव के समय उन्होंने 2500 गायों को कत्ल घर से बचाकर गौ सदनों के हवाले किया। आप अखिल भारतीय श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन कान्फ्रेंस के 25 वर्ष तक महामंत्री एवं ट्रस्टी रहे। सम्मानित एकता और नैतिक मूल्यों की स्थापना के लिए उन्होंने कॉन्फ्रेंस की गतिविधियों को नया आयाम दिया। दिल्ली में भगतसिंह मार्ग पर निर्मित विशाल 'जैन भवन' आप ही की सूझ-बूझ का फल है। भारत-पाकिस्तान के बँटवारे के साथ विस्थापित हुई बहनों के पुनर्वास हेतु आपका सहयोग चिर-स्मरणीय रहेगा। आप दिल्ली की अनेक संस्थाओं के सभापति रहे। भारत के राष्ट्रपति ने सन् 1970 में उन्हें 'प्राणीमित्र' की उपाधि से विभूषित किया। सन् 1971 में उन्हें भारत सरकार द्वारा पद्मश्री की उपाधि से सम्मानित किया गया। जैन समाज ने सन् 1970 में उन्हें 'समाज रत्न' एवं सन् 1972 में समाज भूषण के विरुद से विभूषित कया। वे सन् 1980 में स्वर्गस्थ हुए।
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