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जैन-विभूतियाँ
32. बाबू तखतमल जैन (1894-1976)
जन्म : गंज बासौदा, 1894 पिताश्री : लूणकरणजी जैन पद/उपाधि : मुख्यमंत्री, मध्यप्रदेश दिवंगति : 1976
आधुनिक भारत के निर्माण में जिस ओसवाल श्रेष्ठि ने प्रमुख भूमिका निभाई वे थे बाबू तख्तमल जैन। अखिल भारतीय काँग्रेस कमेटी के महामंत्री पद को सुशोभित करने के साथ ही आप नवीन मध्यप्रदेश के गठन एवं उत्तरोत्तर विकास के प्रेरणास्रोत रहे।
आपका जन्म सं. 1951 में गंजबासौदा (भेलसा) के प्रतिष्ठित जालोरी खानदान में हुआ। मुनि ज्ञानसुन्दरजी ने जालोरी गोत्र को ओसवालों के 18 मूलगोत्रों में से एक कुलहट गोत्र की शाखा माना है। इसमें कोई शक नहीं कि इनके पूर्वज जालौर से प्रत्यावर्तन के कारण ही जालौरी कहलाए। सेठ खुशालचन्द अरारिया से रीवाँ आकर बसे। उनके पौत्र ताराचन्द रीवा से भेलसा आये। उनके पौत्र लूनकरण जी ने अपने अध्यवसाय से भेलसा में व्यापार एवं जमींदारी स्थापित की। वे बड़े उदार एवं लोकप्रिय थे। कहते हैं एक मृत्युभोज में उन्होंने अछूतों (मेहतरों) को सोने की एक-एक सींक लगे पत्तलों में लड्डू जलेबी का भोजन कराया था।
सेठ लूनकरण जी की एकमात्र संतान थे- बाबू तख्तमल। भेलसा में ननिहाल में ही आपकी शिक्षा सम्पन्न हुई। सं. 1979 में कानून के स्नातक बनकर आपने बासौदा में निजी प्रैक्टिस शुरु की। एक यशस्वी नेता एवं विधिवेत्ता के रूप में आपकी शोहरत बढ़ती गई। पैतृक व्यवसाय भी विस्तृत होता गया। अत: पूरा परिवार भेलसा आ बसा। आपके विधिक ज्ञानके कारण ग्वालियर राज्य की सिंधिया सरकार के मजलिस-ए-आम और नजलिस