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यत्पृष्टमादितस्तेन तत्सर्वमनुपूर्वशः । बाचस्पतिरनायासाद भरतं प्रत्यबूवुधत् ॥ 190 ॥
___ आविपु०-01-पृ० 25 भरत ने जो कुछ पूछा-उसको भगवान् ऋषभदेव बिना किसी कष्ट के क्रम पूर्वक कहने लगे। 190॥ (b) दिव्य ध्वनि अनक्षरात्मक
यत्सर्वात्महितं न वर्णसहितं न स्पन्दितोष्ठद्वयं । नो वांछाकलितं न दोषमलिनं नोच्छवासख्खक्रमं ॥ शांतामर्षविषैः समं पशुगणैराकणितं कषिभिस्तन्नः।
सर्वविदो विनष्टविपदः पायादपूर्व वचः ॥ सर्व जीव हितकर, वर्ण रहित, दोनों ओष्ठ के परिस्पंदन से रहित, इच्छा रहित, दोष रहित, उच्छ्वास रूद्ध से रहित, द्वष आदि से रहित होने के कारण शान्त समान रूप से पशु-पक्षी मनुष्य-देव आदि द्वारा सुनने योग्य सम्पूर्ण विषय को प्रतिपादन करने वाला समस्त विपद से रहित, अपूर्व वचन (दिव्य-ध्वनि) हम सब की रक्षा करें।
इस श्लोक में 'न' वर्ण सहित विशेषण से सिद्ध होता है दिव्य-ध्वनि अक्षर से रहित होने के कारण अनक्षरात्मक है।
भाषात्मको भाषारहितश्चेति, भाषात्मको द्विविधोऽक्षरात्मकोऽनक्षरात्मकश्चेति । अक्षरात्मकः संस्कृतप्राकृतादिरूपेणायंम्लेच्छभाषाहेतुः, अनक्षरात्मको द्विन्द्रियादिशब्दरूपो दिव्य-ध्वनिरूपश्च ।
भाषा दो प्रकार के हैं(1) भाषात्मक, (2) अभाषात्मक । पुन: भाषा (1) अक्षरात्मक, (2) अनाक्षरात्मक रूप से दो प्रकार के हैंअक्षरात्मक भाषा
संस्कृत, प्राकृत, आर्य, म्लेच्छादि भाषा रूप जो शब्द हैं वे सब अक्षरात्मक भाषा है।
अनक्षरात्मक भाषा
द्विइन्द्रिय, त्रिइन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, असंज्ञि, पंचेन्द्रिय जीवों के शब्द तथा केवल भगवान के दिव्य-ध्वनि अनक्षरात्मक है।
दिव्य-ध्वनि अक्षर एवं अनक्षरात्मक है। इसमें सूक्ष्म भाषा विज्ञान, शब्द विज्ञान, ध्वनि विज्ञान के सिद्धान्त निहित हैं। जिस समय टेलिप्रिन्टर भेजा जाता है उस समय टेलिप्रिन्टर का संवाद व सन्देश कुछ अनेक अनक्षरात्मक संकेतात्मक (टिक-टक-टक-टर) ध्वनि रूप रहता है। संवाद ग्राहक उस संकेतात्मक ध्वनि को अक्षर भाषात्मक ध्वनि में परिवर्तित कर देता है।