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अरहनाथ तीर्थङ्कर, तीर्थङ्कर पदवी के साथ-साथ कामदेव एवं चक्रवर्तित्व को प्राप्त किये थे । तो भी जब अन्तरंग में ज्ञान वैराग्य रूपी सूर्य उदय हुआ तब उनके अज्ञान, मोह, आसक्ति, भोग, कांक्षा रूपी अन्धकार विलय हो गया । तब वे सम्पूर्ण वैभव को किस प्रकार हेय दृष्टि से त्याग किये, उसको उपमा अलंकार से अलंकृत भाषा में महान् तार्किक, दार्शनिक, प्रज्ञाचक्षु समन्तभद्र स्वामी वृहत् स्वयंभूस्तोत्र में बताते हैं
लक्ष्मी विभव सर्वस्वं मुमुक्षोश्चक्र लाञ्छनम् । साम्राज्यं सार्वभौमं ते जरतृणमिवाऽभवत् ॥ 88 ॥
वैराग्य सम्पन्न मुमुक्षु तीर्थङ्कर चक्रवर्ती अरहनाथ ने राज्यश्री, वैभव, सार्वभौम षड्खण्ड साम्राज्य को जीर्ण तृणवत् त्याग कर दिये ।
जब अन्तरंग में वैराग्य उत्पन्न होता है तब पहले जो आकर्षणपूर्ण लगते थे, सदृश निस्सार, हेय, तत्जनीय प्रतिभासित होता है । एक कवि ने कहा है
गो धन, गजधन, राजधन और रतन धन खान । धूरी समान ॥
जब आवे संतोष धन सब धन
जब संतोष, वैराग्य उत्पन्न होता है तब धन सम्पत्ति, वैभव आदि धूल के समान प्रतिभासित होता है । जब संतोष धन उत्पन्न नहीं होता है तब विपुल धन भी धूली के समान प्रतिभासित होता है । जैसे धूली इच्छा पूर्ति करने के लिये अपर्याप्त होता है उसी प्रकार असंतोषी व्यक्ति के लिये विपुल धन भी अपर्याप्त होता है । पूर्व संस्कार वशन वर्तमान भव में कुछ बाह्य वैराग्यपूर्ण निमित्त प्राप्त करके तीर्थङ्कर भगवान दीक्षा धारण करने के लिये लालायित हो उठते हैं तब लौकान्तिक देव उस उत्तम कार्य के लिए उत्साहित एवं अनुमोदना करने के लिये स्वर्ग से आकर तीर्थङ्कर भगवान को भक्ति विनय भाव से निवेदन करते हैं । हे ! जगत् ! उद्धारक विश्व पिता, विश्व के अनिमित्त बन्धु, दयामय भगवान् ! आप जो मन से उत्कृष्ठ भावना किये हैं वह भावना प्रशंसनीय - अभिवंदनीय है, आप शीघ्रातिशीघ्र सांसारिक दृढ़ बन्धन को निर्ममत्व समता भाव से छेदन-भेदन करके स्वकल्याण के साथ-साथ विश्व कल्याण के लिये आदर्श अन्तरंग - बहिरंग ग्रंथियों से विमुक्त यथाजात दिगम्बर मुद्रा को धारण करके आत्म साधन के लिये तत्पर होइये ।
नभोऽङ्गण मथा रुध्य तेऽयोध्यां परितः पुरीम् । तस्थुः स्ववाहनानीका नाकिनाथा निकायशः ॥ 73 ॥
आदि पुराण । पर्व 17- पृ० 379
अथानन्तर समस्त इन्द्र अपने वाहनों और अपने-अपने देव निकाय (समूह) के साथ आकाश रूपी आँगन को व्याप्त करते हुये आये और अयोध्यापुरी के चारों ओर आकाश को घेरकर अपने-अपने निकाय के अनुसार ठहर गये ।