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अध्याय
तीर्थंकर सम्बन्धी महत्त्वपूर्ण विशेष वर्णन
कुबेर की किमिच्छक घोषणा
विहाराभिमुखे खेऽगाग्राज्जिनेन्द्रऽवतरिष्यति । स्वर्गाग्रादिव भूलोकं समुद्धर्तु भवोदधेः ॥1॥
हरिवंशपुराण 59 सर्ग । पृष्ठ 694 गृह्मतां गृह्यतां काम्यं यथाकाम मिहार्थिमिः।
इति नित्यं धनेशेन घुष्यते काम घोषणा ॥2॥ जिस प्रकार पहले संसार-समुद्र से प्राणियों को पार करने के लिये भगवान स्वर्ग के अग्रभाग से पृथिवी लोक पर अवतीर्ण हुए थे, उसी प्रकार जब विहार के लिए सम्मुख हो गिरनार पर्वत के शिखर से नीचे उतरने के लिये उद्यत हुये तब कुबेर ने निरन्तर यह मनचाही घोषणा शुरू कर दी कि जिस याचक को जिस वस्तु की इच्छा हो वह यहाँ आकर उसे इच्छानुसार ले ॥ 1-21 ॥ इच्छित वस्तु प्रदायी भूमि
कामदा कामवद् भूमिः कल्प्यते मणिकुट्टिमा।
माङ्गल्य विजयोद्योगे विभोः किं वा न कल्प्यते ॥3॥ उस समय कामधेनु के समान इच्छित पदार्थ प्रदान करने वाली मणिमयी भूमि बनायी गयी । सो ठीक ही है क्योंकि भगवान् के मंगलमय विजयोद्योग के समय क्या नहीं किया जाता ? अर्थात् सब कुछ किया जाता है। सर्व भूत हितकारी 4 महाभूत
महाभूतानि सर्वाणि भर्तुर्भूतहितोद्यमे ।
सर्वभूतहितानि स्युस्तादृशी खलु सार्वता ॥4॥ जबकि भगवान् का समस्त भूतों-प्राणियों के हित के लिए उद्यम हो रहा था तब पृथिवी, जल, अग्नि और वायुरूप चार महाभूत भी समस्त भूतों-प्राणियों के हितकर हो गये सो ठीक ही है क्योंकि भगवान् की सर्व हितकारिता वैसी ही अनुपम थी।