________________
देखकर वे उस मार्ग को छोड़कर अन्य मार्ग से जाते थे।
निमित्तों से दूर रहना पाप से बचने का उत्तम उपाय है।
अच्छी अच्छी मिठाइयाँ एवं मेवे आदिखाने से रसना (जीभ) के राग में अत्यन्त वृद्धि होती हो तो मेवे-मिठाइयाँ को खाना ही बन्द कर देना चाहिये।
कुत्सित एवं अश्लील साहित्य के पठन से मन में विकार उत्पन्न होते हों तो उस प्रकार के साहित्य को पढ़ना ही नहीं चाहिये। विकारों से बचने का सही श्रेष्ठ उपाय है।
यह तो एक उदाहरण मात्र है। विकारों का कारण केवल अश्लील साहित्य ही नहीं है, बरे मित्रों की संगति, सेक्स सम्बन्धी फिल्में, स्त्रियों से अधिक परिचय, मिष्टान्न भोजन, रात्रि भोजन आदि अनेक कारण हैं संक्षेप में विकार के जो जो निमित्त हो, उन सबका परित्याग करना ही विकारों से बचने का उत्तम उपाय है।
ब्रह्मचर्य पालन के अभिलाषी व्यक्ति को विकार के निमित्तों का परित्याग कर देना चाहिये, ताकि उसके लिये ब्रह्मचर्य का पालन सरल हो जाये।
यही बात समस्त पापों के लिये लागू करनी चाहिये। जिन जिन पापों से बचने की हमारी इच्छा हो, उन उन पापों में जो जो कारण, निमित्त हों, उन सबसे दूर रहने का निरन्तर प्रयत्न करना चाहिये।
जो व्यक्ति निमित्तों से दूर रहता है, वह प्राय: पाप से बचे बिना नहीं रहता और जो व्यक्ति निमित्तों के समीप जाता है वह प्राय: पापों से लिप्त हुए बिना नहीं रहता।
उसी भव में मोक्ष प्राप्त करने वाले रहनेमि जैसे भी गुफा में वर्षा से भीगी हुई साध्वी राजिमती को देखकर क्या विकारी नहीं हुए थे? वे तो सचमुच महात्मा थे, जिससे राजिमती के बोध-वचन श्रवणकर पुन: विरक्त हुए और श्री नेमिनाथ भगवान के पास जाकर उन्होंने उस पाप का प्रायश्चित कर लिया।
भीगी हुई राजिमती का दर्शन रूपी निमित्त ही रहनेमि के पतनका कारण बना।
रूपकोशा के दर्शन रूपी निमित्त से ही सिंह-गुफा-निवासी मुनि मन से पतित हो गये थे न? और उसके कहने से वे चातुर्मास की विराधना की भी पर्वाह किये बिना रत्न-कम्बल लेने के लिये नेपाल की ओर प्रयाण कर गये थे। यह तो रूपकोशा ने अपनी कुशलता से मुनि को पतित होने से बचा लिया।
नंदिषेण जैसे महात्मा भी वेश्या के घर रूपी निमित्त के समीप जाने से ही पतित हुए।
यदि ऐसे ऐसे महान् आत्माओं के लिये भी निमित्त पतन का कारण हो जाता है, तो हम जैसे सामान्य मनुष्यों की तो शक्ति ही क्या है?
इस कारण ही निष्पाप बने रहने की तमन्ना वाले पुण्यात्माओं को पापों से बचने के लिये
२